परिचित प्रश्न नई समीक्षा | Parichit Prashn Naye Samiksha

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Parichit Prashn Naye Samiksha by सत्यपाल चुघ - Satyapal Chugh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९] परिचित प्रइन, नए उत्तर २. लोक-शास्त्र का समन्वय लोकं अर शास्त्र दोनों का समन्वय करके तुलसी ने धमं को व्यवहारोपयोगी बना दिया । उनके ग्रन्थों के अध्ययन से लोक व्यवहार के सूक्ष्म तथा शास्त्र के गम्भीर भ्रध्ययन का प्रमाण मिलता है! ३. शास्त्र ।-विघेक तुलसीदास ने मात्र परम्पराबद्ध विवासो को प्रोत्साहन नही दिया, विवेक दृष्टि द्वाक्ष संतुलित दृष्टि के निर्माण का प्रयास किया है। अपने भक्ति-पथ की व्याख्या में वह कहते हैं--- श्रुति सम्मत हरि-भक्ति पथ, संयुत विरति विवेक इस दृष्टि से कबीर से उन की तुलना की जा सकती है जो विवेक को ही अपना गुरु बताते हैं-- कहै कबीर मैं सो गुरु पाया जा का नाउँ विवेक । तुलसीदास अगली ही पंक्ति में उन लोगों को सचेत करते हैं जो सोहवर, श्रज्ञान वद्य या भ्रपने ज्ञान के अहँकार मे कल्पित पंथों का निर्माण कर उस पर चलते है और नाता पंथों को जन्म देकर समाज में उच्छ खंलता फैलाते हैं-- तेहि न चलहि नर मोह बस, कलपहि पंथ अनेक । (मानस) ४. इष्ट देव के स्वरूप में समन्वयं (क) निगरण +-सगुण--तुलसी के इष्ट देव हैं राम। यही उनकी নিব का केन्द्र हैं। कबीर ने भी राम का नाम लिया है किन्तु अ्रवतारी पुरुष तथा सगुण-साकार न होने की स्पष्ट घोषणा भी की है--- १. दशरथ सुत तिहुं लोक बखाना, राम नाम का मरम है झाना। २. जाके मुख माथा नही, नाही रूप कुरूप, पुहुष वास ते पार्तरा ऐसा तत्व अमुप ।




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