मेघदूत का हिंदी गद्य | Meghdoot Ka Hindi Gadya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.16 MB
कुल पष्ठ :
63
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about महावीर प्रसाद द्विवेदी - Mahavir Prasad Dwivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सघदूत । के समय राम-लक््मण के साध सीताजी कुछ समय तक रही थी इस पवत्त के जलाशु्या में सीवाजी ने स्नान भी किया था । इस कारण उनका जन अतन्त पवित्र है । रामगिरि सदा हरा भरा रहता है | उस पर तरह तरह की लताओं श्रनार तस्॒ों की बहुत अधिकता हैं | इस कारण उसके आश्रमें में सदा शीवल छाया बनी रही है। गसे ही छायादार एक सुन्दर आश्रम सें यच्त रहने लगा । उस पव॑त्त पर चलें ज्ञान से यक्ष की पी उससे छूट गई । इस कारण उसे यड़ा दुःख चुदा । वह बेतरह डुबला होगया । उसका सपरा शरीर सुख गया । नौबत यहाँ तक पहुँची कि बहुत दुबल्ता हो जान से साने का रन्नुजटित कड़ा उसके हाथ से गिर गया और उसे ख़बर भी न हुई । इस तरह बहाँ रहते इसे कई महीने बीत गये. जब आषाढ़ का महीना लगा तब उसने देखा कि बादलों का समुदाय पर्वत के शिखर पर एसा लटक रहा है जैसे काला काला विशाल-काय हाथी किसी किसे के परकाटे था दीवार को अपने मस्तक की ठोकरां से गिरा रहा हो । इस अनुपम प्राकतिक दृश्य का बह बड़े चाव से देख लगा । पर इससे उसका दुःख दूना उसे तत्काल ही अपनी प्रियवसा का स्मरण है आया । उसकी भ्रॉँखे अाँसुझों से उबडना आई । कुछ देर तक चह न सालूम सनही मन कया साचता रहा । अपने झागसन से कतकी का कुसुमित करते- वाले मेघों की घटा उमड़ने पर संयाशियां के भी मन की दशा कुछ को कुछ हो जावी है । फिर भला यक्ष के सदश वियागी का इदय यदि उत्कण्ठित हो उठे बार वियागाग्ति से जलने लगे तो आश्चर्य छो कथा? . के
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