बंकिम ग्रन्थावली | Bankim Granthawali

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Bankim Granthawali by श्री औंकार शरद - Onkar Sharad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सच १८र्दष् के माचे महीने में बंकिमचन्द्र का स्वास्थ्य एकाएक खराब हुआ । वे बहुशूब रोग से पीडित हुए । तमाम इलाज के बावजुद भी रोग भयानक रूप से बढ़ा । आठ अप्रैल १८८४ को अपराह्न मे आप ने शरीर त्याग विया । बंकिमचन्द्र की धर्मपत्नी राजलमीदेवी बाद में कई वर्षों तक जीवित रही । बेकिमचन्द्र को कोड पुत्र न था । तीन कन्या एँ थी--शरत्कुमा री नीलाकुमारी और उत्पलकुमारी । बंकिमच्द्र की मृत्यु से बंग-देश शोक-सागर में डूब गया । विभिस शोक-सभाओं मे उनकी कीतिकथा का उल्लेख हुआ । कविवर हेमचन्द् व्दयोपाध्याय की लम्बी कविता में बंकिमचन्प्र के प्रति समंवेदना का गहरा प्रकाश हुआ हैं । कनि गोविस्दचन्द्र दास ते बंकिमचन्द्र के नायक- नायिकाओ और उनके साहित्य के अन्य प्रतीको का समावेश कर के जिस शोक-गाथा की रचना की उसका कुछ अंश टस प्रकार है तुमि साजादले भाषा नाना. आभरने पातों रंग कतो रस कमलाकास्तेर... ब्रश लिखिते रहस्य बातो बिज्ञाते दर्शने । बूनाइले योगभक्ति कृष्णेर असीम शक्ति देखाइले आदर्श नंबर देवनारायने । झेडे पूछे धूलामादि हिन्दुर आसन खाँटि दा इले प्रेधर्म ... देशवाशीगने । तोमर स्वाधीन मे शरतेर रौद्रवतृ ध्वनितेछे.... भारतेर. गगने.. गंगने। प्रतिभार दीप्त रवि बागालीर.. महाकथि केत असर या ओ आज अगस्त्प गयने | दालिया आँधार घन भाषा-फुलवते ? नक्रिमचन्द्र की सत्यु के बारह वर्षों बाद स्वदेशी आस्दोलन के रूप बंग-देश से एक अभूतपूर्व जातीय ज आ। मनीषियों ने एक मत हो कर बंकिमचन्द्र की भावधारा और अनुप्रेरणा को स्वीकार किया । अरविन्द घोष श्री अरविंद ने १६ अप्रैल सन १८०७ को बेकिमचन्द्र के मानस की व्याख्या कम्ते हुए अंग्रेजी मे एक लेख लिखा ।




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