कवीर वाणी सुधा | Kabir Vani Sudha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सच कवीर-वाणों सुधा भी सं० १६५० दि० अर्यात्‌ कबीर साहब की सृत्यु के लगभग सी वर्ष वाद का सिद्ध होवा है (दे० कवीर-प्रंयावलो, प्रयाय पु० €६) । बतः *बीजक' को सुरणेतया शामाधिक मान कर उसके झाधघार पर कोई निष्कर्ष निकालना निरापद नहीं माना जा सकता । ऊपर उद्धृत पंक्तियाँ कवीर-वाणी की अन्य किसी शाखा में नहीं मिलतीं, अतः इनकी शमाणिकता के बारे में बौर भी अधिक संदेह होता है ! दरसरी कठिनाई यह है कि मानिकपुर के शेखर तक़ी की मृत्यु सं० १६०३ वि० में हुई थी (कवीर एंड दि कबीरपंथ, पू० २५9 । अतः उन्हें कवीर का समकालीन नहीं माना जा सकता । प्रसिद्ध सूफ़ी संत हिशामुद्दीन मानिकपुरी को सवश्य कदीर का समकालौन' माना जा सकता है जिनका देहांत सं० १४०६ में हुमा था 1 “माइनेसकदरी ' में किसी शेख सकी की कब्र का भानिकपुर में होना बताया गया है, किंतु उसमें उनके समय बादि का उल्लेख न होने से ग्रह कहना कठिन है कि वे कवीर के शमकालीन ये ! ह्लूँसी वाले शेख़ तक़ी का निधन-काल इलाहावाद गबटियर में सन्‌ १इप४ ई० (१४४१ वि०) दिया है, किंतु वेस्टकाट साहव ने किसी झन्य प्रमाण के आधार पर उनका देद्दावछान सं० १४८६ से निश्चित किया है गौर यह बतलाया है कि कवीर ३० वर्ष की अदस्या में उनसे मिले थे । झूंदी में एक क्वीर नाला है जिससे इस धटना का सम्बन्ध जोड़ा जाता है, कितु ये नाम अन्य आधारों पर दिये गये जान पड़ते हैं जैसे *कबीर वट' का ग्यं चस्तुत£ महानु वट है, न कि कबीर द्वारा छारोपित्र बट । क्लु यदि दोनो सतों को समकालीन मान लिया जाय को भी उनका गुरु-शिप्य सम्बन्ध सिद्ध नहीं होता 1 कवीरपंयी ग्रंथों में शेख़ तक़ी को सिकन्दर लोदी कर राजगुरु बतलाया गया है भौर कबीर साहब के साय उनके वाद-विवाद के अनेक प्रसंग मिलते हैं, किंतु सिकन्दर लोदी को भी कवीर का समकालीन सानने में अनिक कठिनाइयाँ उपस्थित होती हैं, अतः इन आत्यानों को प्रामाणिकता संदिग्ध है । वस्तुतः इन आद्यातों का शेख तक़ी किसी सुफ़ी फ़कीर का




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