चिंतामणि - भाग 1 | Chintaamandi - Bhag 1

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Chintaamandi - Bhag 1 by रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उत्साह दुःख के वर्ग में जो स्थान भय का है, वही स्थान आनन्द-वग में उत्साह का है । भय में हम प्रस्तुत कटिन स्थिति के निश्चय से विशेष रूप में दुखी ओर कभी-कभी उस स्थिति से अपने को दूर रखने के लिए प्रयत्नवान्‌ भी होते हे } उत्साह में टम आनेवाली कठिन स्थिति के भीतर साहस के अवसर के निश्चय-द्वारा प्रस्तुत कम-सुख की उमंग में अवश्य प्रयत्नवान्‌ होते हे । उस्साह मेक या हानि सहने की ददता के साथ-साथ कम में प्रवृत्त होने के आनंद का योग रहता ह । साह- सपूर्ण आनन्द की उमंग का नाम उत्साह दै । कम-सौन्द्य के उपासक ही सच्चे उत्साही कहलाते है । जिन कर्मा' में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है उन सबके प्रति उत्कण्ठापूर्ण आनन्द उत्साह के अन्तगत लिया जाता है। कष्ट था हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं| साहित्य-मीमांसकों ने इसी हृष्टि से युद्ध-बीर, दान- वोर, दया-वीर इत्यादि भेद किए है । इनमें सबसे ग्राचीन ओर प्रधान युद्ध वीरता है,जिसमें आधघात,पोड़ा क्या मृत्यु तक की परवा नहीं रहती | इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यन्त प्राचीन काल से पड़ता चला आ रहा है,जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्प पर पहुँचते ই) केवल कष्ट या पीड़ा सहन करने के साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता | उसके साथ आनन्दपूर्ण प्रय्ञ या उसकी उत्कण्ठा का योग चाहिए। बिना बेहोश हुए भारी फोड़ा चिराने को तैयार होना साहस कहा जायगा, पर उत्साह नहीं । इसी प्रकार चुपचाप




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