तुलसी आधुनिक वातायन से | Tulasi Adhunik Vatayan Se

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Book Image : तुलसी आधुनिक वातायन से  - Tulasi Adhunik Vatayan Se

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ओर घामिक कला एवं संस्कृति का अभिषेक हो गया। फठतः खुंगार में लोकिकता तथा नीति में पारलौकिक्ता का भो सामंजस्य हुआ । ऊपर से अवतरित होते हृए सामन्तवाद का महाभाव अवतारवादं में पुंजीभूत हुआ । लौह युग मे ( गुप्त सम्नाटों के ) स्वर्ण-युग तकके बीच लगभग एक हजार वर्षों मे वात्मौकि-रामायण का संकलित रूप प्रा हुआ। उस समय पृथ्वी पर गुणवान्‌ तथा वीर्यवान्‌ ( साम््रतं लोके गुणवान्‌ कदच वीर्यवान्‌ १.१.२ ) नरशिरोमणि एकमात्र श्रीराम ही माने गये े। ऐसे मर्यादापुरुषोत्तम की रामायण में आत्मत्याग, वीरत्व तथा पति-पत्नी प्रेम की अनूठी करुणा और अद्भुत उल्लास के विरुद्धों का सामंजस्य है। इसलिए इतनी शताब्दियों के दौरान मनुष्य राम में ब्रह्मस्व (उरनिषद्‌कालीन प्रभाव), राजत्व ( शुंग-कुषाणकालीन प्रभाव ) तथा अवतारत्व ( गुप्तकालीन प्रभाव ) का समुपरंजन होता गया। यही हमारा मूलसत्र है । अब श्रीराम तथा वाल्मीकि रामायण की अपेक्षित अन्वीक्षा पूरी हो जाती है । उपर्यक्त भूमिका में हम कई सर्यवंशी श्रीरामों के चरित झिलमिलाते हुए देख सकते हैं । अतो देवा अवन्तु नो यतो विष्णुविचक्रमे । पृथिव्या: सप्त धाममिः ॥ ...“रक्षा, रंजन और रसास्वादन, इन तीन प्रयोजनों से सन्निविष्ट अवतारवाद का जन्म तो हुआ देवपक्षीय विष्णु के असुरसंहारक या देवरक्षक पराक्रम में, विस्तार हुआ परब्रह्म विष्णु एवं उन के तदरूप अवतारी उपास्यों में, और पर्यवसान हुआ रस के वशवर्ती अवतारी उपास्यो की नित्य ओर नैमित्तिक, गुप्त एवं प्रकट रससिक्‍्त लीलाओं मे ' ` आदि रामायण में राम विष्णु के अवतार न हो कर विष्णु के समान वोयंबान्‌ तथा गुणवान्‌ है। राजा राम पाँच देवताओं के स्वरूपों, अंशों तथा गुणों को घारण किये हुए लक्षित हुए हैं-- अग्नि का प्रताप, इन्द्र का पराक्रम, सोम की सौम्यता, यम का दण्ड तथा वरुण की प्रसन्नता । नृतत्त्वशास्त्रीय दृष्टि से राम चरवाही युग तथा कृषिपरक राजतन्त्रीय व्यवस्था के सन्धियुग के प्रतीक हैं। उन में सर्वत्र धनुवेंद की प्रधानता है तथा सीता में कृषि संस्कृति के प्रतीकों की प्रचुरता है। इस तरह पुरातत्त्व, नृतत्व और इतिहासचक्र के संयोग से राम का स्वरूप भारतीय सम्यता तथा भारतीय सांस्कृतिक एकता ( उत्तर- दक्षिण, पूर्व-पश्चिम, ग्राम-नगर, राजा-प्रजा, लोकतन्त्र-राजतन्त्र ) का पुरातन प्रतीक हो जाता है। वंदिक देवों के मानवीकृत रूपों से राम के स्वरूप की रचना हुई। इसी की प्रकता के लिए विष्णु को राम तथा उन के भाइयों के रूप में विभक्त हो कर अवतार लेते हुए माना गया। लक्ष्मण (शेष ), भरत ( शंख ) तथा शत्रुष्न ( सुदर्शन ) के अवतार हुए। यह परम्परा मध्यकाल की साम्प्रदायिक रामकथाओं में भी स्वीकृत हुई हैं। पौराणिक अवतारवादी विष्णु के सामूहिक अवतार की संयोजना में सीता लक्ष्मी की, बालि इन्दर के, जाम्बवान ब्रह्मा के, सुग्रीव सूर्य के, नल विश्वकर्मा के, नील अग्नि के, १ “मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद” कपिलदेत पाण्डेव ( १९६१ ), पृ, १२। १५




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