बंधे की चेतना | Bande Ki Chetana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ बंदी की चेतना नही होती और न स्थिरता तथा विवेक का विकास हुआ रहता है फिर भी यही समय है जो भावी जीवन का आधार बनता है, मनष्य के समस्त झागामी जीवन के निर्माण का वीज इसी समय बोया जाता है । किशोर का मस्तिष्क और उसका हृदय स्वच्छ जल को भांति निर्मल होता है । इस काल में उसके हृदय और मस्तिष्क में बाह्य परिस्थितियों तथा आंतरिक भावों और दूसरे उपकरणों की जो छाया पड़ती है वह सहज ही प्रतिबिबित हो जाती है। ये प्रतिबिब एक प्रकार से साँचे का काम करते है जो उसके समस्त जीवन को एक रूप में ढाल देते हैं। अपनी सरल, विमल तथा ग्रहणाशील प्रवत्तियों के कारण आज ग्रंतस्तल में पड़े हुए प्रति- विव उसके लिये संस्क्रार बन जाते हैं। आज के इन संस्कारों की छाप प्रमिट होती है, जो जीवनपर्यत मिटाये नहीं मिटती । ये संस्कार जन्मभर तुम्हारे साथी रहेंगे । ये ही तुम्हारी भावना, स्वभाव, चरित्न, प्रवृत्ति, आदतो को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में प्रभावित करते रहेगे। अतएव सोचा कि दो काम एक साथ ही करूँ | ग्रपता भार हलका करूँ और साथ हो साथ जीवन के अपने अनुभवों के द्वारा कुछ :एऐसी छाप डालने की चेष्टा करूँ जो आगे चलकर तुम्हारे लिय कुछ सहायक हो सके | संभव है वे तुम्हारे चरित्रनिर्माण में और भावी जीवनसंधर्ष में भी कुछ मदद दे सकें | मैं नही जानता कि इसमें मुझे कुछ सफलता मिलेगी या नही । पर मेरा भार कुछ हल्का अवश्य होगा । यहाँ पढ़ने को कुछ नही है, पर सबसे बड़ा ग्रंथ तो जीवन ही है जिसका अ्रध्ययन करने की ओर कभी कोई ध्यान नहीं देता। कसे आश्चयं की बात है कि मनष्य अति गृह्य रहस्यों का उद्घाटन करने का दावा करता है, पर जो उसके लिये सबसे अधिक स्पष्ट और उसके सबसे अ्रधिक निकट है उसके बारे में कुछ नही जानता । करोड़ों मील दूर के सितारो, सूर्य, चंद्र तथा ग्रहों और उपग्रहों के बारे में आज मन॒ष्य को काफी ज्ञान है । पृथ्वी के उदर में, महा समुद्र के अतल तल में और गगनचंबी हिमालय पर्वत की चोटियों का 'पता उसे लग जाता है । अदृश्य भौतिक तथा अभौतिक वस्तुओं की कल्पना और आभास प्राप्त करने में वह समर्थ होता है पर यह जीवन जो उसके इतने निकट ओर उसके संमुख इतना स्पष्ट है उसकी ग्त्थियों के बारे में उसे या तो अधिक मालम नहीं है या अधिक जानने की चेष्टा करता है । तो अपेक्षाकृत सबसे कम जान पाता है । मैं जानता हूँ कि इस प्रकार की बहुत सी बातें तुम्हारेलिय व्यर्थ होंगी क्योंकि तुम आज उन्हें समझ नहीं सकोगे । आज वे भले ही व्यर्थ हों पर कल संभव है तुम्हारे विचारक्षेत्र के लिये एक विषय बन सके । आज जो बात तुम्हारी समभ में आए और काम की मालूम हो उससे लाभ उठाना और जो न समभ में आए उप्ते छोड़कर श्रागे बह जाना । लिखने का तो मेरा पेशा ही रहा है। संभव है कि रोज की वह आदत ही लिखने के लिये बाध्य कर रही हो । पर बाहर लिखता था হীঅহীজ জী ছবলাক্সী पर। घटनाएँ आज की दुनियाँ में जिस तेजी से घटती थीं उसी तेजी' से लिखना 'पड़ता था। बीसवों शताब्दी मे देनिक अखबार के संपादक को इतना अवकाश कहाँ रहता है कि वह आरास से बैठकर एक एक बात को तौलकर, शांति आर धयं के साथ लिखे । । वह तो लिखता है मशीन की तरह और लिखी




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