चित्रावली | Chitravali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(৫৫) इसकी भाषा की छुद्रता ओर कथा की मनेहरता के देख सभा जे इस पुस्तक की प्रतिलिपि कराई | इस श्राप की आधी नकल बाबू अमारखसिह जी मे की था पर शोष रमाकात ओरोका ने ङी प्रति लिपि ९. ज़नधरी सन्‌ १९०९ का समाप्त हुई । नकल के अर त में निम्न लिखित वार्य काशी की धरति की समाप्ति के अन्तिम वाज्य पात में रुपैय्या लगे स्पय्था एक सै एक १०१) सिका मेसाअर ग्रौ छिखाइ गी कागद रासन थे। जिल्द साज़ । के नोचे लिखा है-- उसी पुस्तक की नकल श्री महामहापा याय प० सुधाकर द्विपेदी जी की आज्ञा से रमाका त ग्राफा ने ता० ९ जनारी सन्‌ १००९ ई का लिख कर तेयार किया ।! द० रमाकात ओमा माज ओझाली' । स प्रतिक्लिपि वा नकल के महामदापाध्याय सुधाकर द्िवेदीने किसी उदू पुस्तक से मिलाया था अथवा किसो उपने शिष्य द्वारा मेकाबिला कराया था। प्रथ में उदू का पाठ ऊपर लिखा था | पर ह ग्रन्थ म पाडा तरया शोधने क के अक्षर द्विवेदी आओ क हाथ कै नहा थे जिससे श्रनुमान हाता हे कि उन्होने इसे उदू भरति से अपने किसी शिष्य आदि द्वारा मिलान करा कर उदू पाठ ऊपर लिखाया था औ्रौर उनका इसे स्वय शोधने का विचार था | मिलान करनेबाला उदू का ठीक नहा पढ़ खकता था इसलिये पाठ में कही कट्दा कठिन भूछ रह गई थी । जिसका उदाहरण यह है--पृष्ठ-१ दूलर जगत मामु जिन पावा जैसे सहरी*१ उदधि कहवा इसमे ररी की जगहे सहरी पाठ रह गया है। हिन्दी प्रति क नकछ करने घाले ने लहरी के 'सहरी' लिखा था ओर उठ प्रति से स॒का बिला करने वाले ने भी इसे झुद्ध माना था | इसी प्र विश्वस कर मने खहरी पर ३-शफरी। एक प्रकार की मछली ने।ट लिखा। इस अश्ुद्धि का पता मुझ एक उर्दू प्रति क मिल जाने से लगा। यद्द प्रति मुझे ६४ पृष्ठ तक छप जाने पर अछईपुर के रसज़ान मिया उपनाम पोथी




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