मानस सरोवर और कैलास | Manas Sarovar Aur Kailash

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Manas Sarovar Aur Kailash by रामचंद्र वर्म्मा - Ramchandra Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपक्रमणिका कदाचित्‌ यह बात किसी को समसोकर वतलने की आवश्यकता न होगी कि ब्रह्मा का मानस-सष्टि मानस सरोवर ओऔर मस॒त्यु जय सदाशिव का निविकल्प समाधि-तेत्र श्री कैलाश यें दोनों ही तीथे हिंदुओं के लिये कहाँ तक श्रेष्ठ ओर पवित्र हैं। इन तीर्था' की यात्रा का सागे भारत के सभी तीथ स्थानों के यात्रा सार्गों की अपेक्षा अधिकतम ठुगम है। अब तक यह मानस तीथं प्रायः सव लोगों के मानस में कल्पना क्ते चित्र को तरह ही हृदय के अंतरतम प्रदेश मे अवस्थान करता था) पहले केवल साधु-संन्यासिगण ही इन तीथों की यात्रा किया करते थे। और जब वे साधु-संन्यासी वहाँ से लोटकर आते थे, तव यदि जन-साधारण में से किसी व्यक्ति को सौभाग्य से उनके दशन हो जाते थे, तब उन सब साधु-महात्माओं के मुख से निकले हुए सानस और कैलास. संवंधी अनेक नित्य-नवीन रहनेवाले और बहुत अधिक ्माश्वये-जनक वणेन उप-कथाश्नों के समान हम लोयों के कानों से मधु-वषेण करते थे ! अनेक स्थलों पर साधारणतः उनका वरुन कुछ इस प्रकार का हुआ करता था--“मानस के नील जल में सद्‌ा नील कमल्‌ खिले रहते है 1 उस स्वच्छ सुमहान पवित्र हद मे देवतागण॒ स्नान, मान आदि नित्य




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