परिमल | Parimal
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
272
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११ )
धन्दों में स्वर की बराचर लड़ियाँ या सम-मात्राएं अ्रधिक मिलती हैं,
इसमें बहुत कम्--प्रायः नहीं 1 हस्व-दीघे-मात्रिक सज्ञीत का सुक् रूप
ऐपा डी होगा, जहाँ स्वर के व्यान तथा पतन पर दी ध्यान रहता है |
प्रौर भावना प्रषरित होती चली जादी है । तोसरे खण्ड में स्वच्छुन्द
छन्द हैं, जिसके सम्बन्ध में मुझे विशेष रूप में कहने की ज़रूरत हे,
कारण, इसे ही हिन्दी मे सर्वाधिक्र कक्नह् का भाग मिला है|
हिन्दी के हृदय में सड़ीबोली की कविता का हार प्रभात की
उज्ज्वल किरणो से पुव ष्ठी चमक उठा है, इसत कोड सन्देह नदी,
और यद्द भी निर्भ्रान्त है कि राष्रू-पात्ति छी कल्पना के काम्यवनमें
सविचार विचश्स करनेवाले हमारे राष्ट्रपतियों के उ्वर मस्तिष्क में
क़ानूनी कोणों के अतिरिक्त भाषा के सम्बन्ध की श्रव तक कोई
भावना, महास्माजी, सदह्ासना मालवीयजी तथा लोकमान्य-जैसे
दो-चार अख्मात-कीर्ति मद्ठापुरुषों को छोड़कर, शत्पन्न नहीं हुईं; नो
कुछ थोड़ा-सा प्रचार तथा श्रान्दोज्ञन राष्ट्रभाषा के विस्तार के लिये
किथाजा रहा है, उसका श्रेय हिन्दी के शुभचिन्तक लाढिस्यिकों को,
हिन्दी के पत्न-पत्निकाशों को ही प्राप्त हे । बंगाज्ञ अभी तझ अपनी
ही भाषा के उध्कष की ओर तमाम भारतवर्ध को खोंच लेने के क्तिये
उत्करिठत.सा देख पडता टै । हसक धरमाख महामना मालनीयजी
के समापतित्व में। कन्नकत्ता विद्यासागर रोलेन-दोष्टल् में दिए हुए
आगरेजी के प्रसिद्ध विद्वान् प्रोफ़ेसर जे० एल्० बनर्जी सहाशय के भाषण
से मित्र छुझा हे । भरतपुर के हिन्दी-साद्वित्य-सम्मेज्ञन ঈঁ হাজি
रवीन्द्रनाथ ने भी अपने भाषण में राष्ट्रआपा के प्रचार पर विशेष कुछ
नहीं कंद्ा, जैसे मद्ठात्मः गासरधीजी द्वारा प्रचारित चर्सा-विषय की अना-
वश्यकता की तरद्द यह राष्ट्रभापा-वाद भी कोई अनावश्यक विपय हो ।
सन्होंने केवल यही कहा हि अपनी भाषा में वह चम्रत्कार दिखलाने
को कोशिश कीजिए, निपतसे लोग स्वर्य उसकी झोर झाहृष्ट हों । यहाँ
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