निरंकुशता -निदर्शन | Nirankushata Nidarshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धनेरंकुशता'-निद्शन ঙ
শিক্ষা खुब्ने शब्दोंमें च्णंन कर स्तुतिन्गान करते है,
तब कालिद[स-जैसे कविका कुमारसस्मवर्त 'शंदड्धार-रस-सस्बन्धिनी
चेष्टाओंका वन! करना निरड्कुशता क्यो यदि “सौन्दय्ये-लदरी'
शहर कृत न भी हो, तो एक भक्त कविकी रचना अवश्य है ।
श्रीहरष-कृत 'रशध्नावल्ली-नाटिका'का मद्अगत्ाचरण इस प्रकार ₹--
“पादाग्रस्थितया खुुःस्तनमरेणानीतया नस्रताम्,
शम्भोः सस्पडलोचनत्रयपथं यान्त्या हदाराघने )
हीमत्या शिरसीहितः सपुलकस्वेदोदगमोर्कस्पया ›
विश्शिष्यन कुसुमाब्जलिगि रिजया क्तिप्तोऽन्तरे पातु वः ।*
क्या सङ्धल्लाचरण भौर उन्गसे नदीं हो सक्ता था? इसके
-क्जिखे विना कविका क्या हरज था क्या वह निर्लजया निरङ्कुश
शा, जो उनने शिव-पावंत्तीका इस प्रकार वर्णन किया † न्दी, यद
सघ वह कुड् नदीं था । वद स्वा कवि या । सामयिक रीतिन्नीतिका
অহন करना सच्चे कविका धमै है । उस समयकी प्रचलित
-प्रणाजीके श्रनुसार पेखा वंन छुरा नहीं समझा जाता था,
_इसीसे संस्क्ृत-साहित्यमे ऐसे श्लोकोंच्ा अभाव नहीं है ।
द्विवेदीजी । कालिदासपर जो दोष आज आप लगाने केएठे हैं,
'वही दोष आप स्वयं चार-पाँच साल पद्ले कर चुके है। आपकी
बुद्धि परिमाजित हे, भौर रुचि परिशोधित दे । फिर आपने यह
पाप क्यो किया ? भापको शायद अपनी करतूत याद नदो, दस.
किये बताये देता हूँ कि चार-पाँच वर्ष पदले आपने 'सरस्वती' में
-सनोरक्षनके लिये निर्न-लिखित श्क्षोक छापा धा--
“कचङुचचिलुकाभे पाणिषु व्याष्तेधु
प्रथमजलधिपुत्रीसङ्कमेऽनङ्गधास्ति ;
भथिततिविडनीवीबन्धनिर्मो्तणाथै,
५ वतुरधिककराशः पातुवश्चक्रपाणिः |
ई
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