विमलज्ञान प्रकाश | Vimalgyan Prakash

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Vimalgyan Prakash by मंगलचंद मालू - Mangalchand Malu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{५ 1. शणमास्यां । मधुर २ स्वर राम अछापी। गहरे झाब्द गुजास्पां राज ॥ आज म्हारा संभव जिनके दित चित्त गण. नास्यां ॥ आ १॥ नष जितारथ सेन्या राणी । ताद्ुत सेवकथास्थां ॥ नवधा भक्त भावसौ करने । प्रेम मगन. हदं जास्यां राज ॥ आ० २॥ मन बंच कायछाय प्रभु सेती। निसदिन सास उसास्पां॥ संभव जिनकी मोहनी सूरति । हिये निरन्तर ध्यास्थां राज॥ जा० ३॥ दीन दयालदीन बंधव के | खाना जाद फहारपां ॥ तमधन प्रान समरपी अभूक्ो । इन पर वेग रिभा- स्थां राज ॥ जआ०य॥ अष्ट कमे दर जति जोरा- वर ते जीत्या छख `पास्यां ॥ जाल्म मोहमार के जगसे। साहस करी भगारपा- राज॥ आ० ५॥. ऊबट पंथ तजी दुरगतिको । शुभगति पंथ सम्ता- स्यां | आगम अरथ तणे अनुसारे । अजुनव ददा अभ्पास्यां राज ॥ आ० ६] काम क्रोध मद लोभं कपटः तजि ! निज णस्‌ ` ख्वखास्थां | बिनैचंद




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