सम्यक्त्वपराक्रम भाग 3 | Samyaktavprakrama Vol 3
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बाईसवा बोल-१ १
है? तो मैं उत्तर देता--एक अक्लमंद वहुत सी भेसों को
घरा सकता है प्रौर कमअक्न को एक ही भेस मार सकतो है।
इस प्रकार अन्य पदार्यों को अपेक्षा बुद्धि महान है ।
रेल, तार, वायुयान आदि का वृद्धि द्वारा हो आविष्हार
हुआ है | अन्तरग और बहिरग वस्तु मे मी ऐसा ही अन्तर
समभाना चाहिए । अन्तरग वस्तु बुद्धि के समान है और
चहिरग वस्तु भेस के समान है । ऐसा होते हुए भी आप
किसे चाहते है? आप वाह्य वस्तुओ को चाहते हैं या সন
হ্যা वस्तुओ को ? कही बाह्य वस्तुय्रों के लिए आप बुद्धि
के दुश्मन तो नहीं बन जाते ? अगर आप बुद्धि के दुश्मन न
बनते हो तो आपको उपदेश देने की आवश्यकता ही न रहे !
जहा रोग ही न हो वहा डाक्टर की क्या आवश्यकता है?
और जहा रगडे-फंगडे न हो वहा वकील की क्या जरूरत
है ? इसो प्रकार अगर आप बुद्धि के शनु न बनते हो तो
हमे उपदेश देने कौ आवश्यकता हौ क्यो पडे ? जनता को
उपदेश इसी कारण देना पडता है कि वे बुद्धि के शनु बन-
कर खान-पान, पहनावा आदि मे बाह्य पदार्थों को महत्व
देते है और विवेकबुद्धि को तिवाजलि दे बेठते - है । जो
लोग सर्देव विवेकवुद्धि से काम लेते हैं, उनके लिए उपदेश
की आवश्यकता ही नही रहती ।
आप लोग धारीर पर पाच-छह कपडे पहनते हैं ।
परतु क्या आपका शरीर इतने अधिक कपडे पहनना चाहता
है? विवेकबुद्धि कहती है कि शरीर को इतने वस्नों की
आवश्यकता नही है, फिर भी लोग ध्यान नही देते और
अधिक कपड़े लादते हैं । यह कार्य बुद्धि के शत्रु होने के
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