सुबह के भूले | Subah Ke Bhule

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : सुबह के भूले  - Subah Ke Bhule

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about इलाचन्द्र जोशी - Elachandra Joshi

Add Infomation AboutElachandra Joshi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सुबह के भूले र जोर सारा । अच्छी बात है, तो इस समय जाता हूँ”, कह कर से चलने लगा । 'तनिक सुनना /? पीछे से आवाज आयी । में लोटा | রিতা যা चेहरा उदास हो आया था। आँखों के कोयों में मू चमक रहे थे। या बात है ?? उसके पास जा कर मेंने घबराहट के साथ पूछा | तो क्या तुम सचमुच बंबड लोट जाओगे ? यहीं आ कर क्यों नहीं बस जाते ? उतनी दूर तुम्हें क्या अच्छा लगता है ? मने कहा : वह्यं मैने दूध का व्यापार खोल रखा है, समिया । कईं भेंसें ओर कई गाये हैँ । कारबार बहुत बढ़ा लिया है, उसे छोड़ कर अभी नहीं आ सकता । बंबई बड़ी अच्छी जगह है, तुम देखोगी तो तबीयत खुश हो जायगी | बहुत बड़ा शहर है ओर हर सड़क में चोबीसों घंटे चहल-पहल रहती है। मेला सा लगा रहता है। जहाँ जाओ वहीं ट्रामों, बसों ओर मोटरकारों की भरमार रहती है । आसमान ज्रे उपर हवाई जहाज चलते रहते ই | रात मे सारा शहूर बिजली की बत्तियों से जगमगा उठता है | रोज सिनेमा देखोगी । पर तीन साल की नन्‍हीं बच्ची को साथ ले कर में केसे जा सकती हूँ?” जमीन की ओर देखते हुए उसने कहा | मेंने कहा इससे भी छोटी बचियों को साथ ले कर लोग बड़ी दूर-दूर से वहाँ आते हैं। अपना मन पक्का कर लो कमिया, ओर मेरे साथ चली चलो। तुम्हें ओर तुम्हारी बच्ची को में हर तरह से आराम से रखूँगा...” “अच्छा तीन दिन बाद फिर कहीं अकेले में मिलने की कोशिश करना |” कहते ही उसने फिर मुँह फेर लिया और उपले पाथने लगी। मेरा मन आशा ओर निराशा के बीच में कूल रहा था। एक लंबी साँस खींच कर उस दिन में अपने गाँव वापस चला गया। तुम जानते हो, बाबाखेड़ा से हमारा याँव दो कोस पर है। में रास्ते भरा इतना




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now