दरिया साहब | Dariya Sahab
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.48 MB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सतमुर का लग पु
मूढ़ काग समझ नहीं, माह साया सेज्रे ।
चून चुगावे -कोय्ली, अपना कर लेते ॥६०॥
चौसाखे नत॒ जान कर,. पिरथणी को जल देत ।
कथघह्ूं आावे चरत॒ बिना, उस चात्रिक के हेत ॥८॥
चनहर चरषे आय कर, देख पप्नीहा चाव ।
ज़िम दरिया सतगुर चले, देख साँहिलां काव ॥३९॥
सहा प्रताप सर पर तप, .करपा रख प्रो
दॉस्या बच्चा कच्छ गुरू, जोये ही जीऊँ ॥६४०॥
जन दरिया गुरदेवजी, ऐखे किया निहाल ।
जेसे सूखी बेलड़ी, बरस किया हरियाल ॥ ४९ ॥
सतशुर सा दाता, नहीं, नहिं. नाम .सरीखा देव ।
सिणच सुमिरन सा चा करे, हो जाय अलख असेव ॥४२॥
जन दॉरंया सतगर करो, रास लाम को रोका ।
अमृत बूठा। सब्द का, ऊणगा परन बीज ॥2३॥
सतरुर बरषे सब्द जल, पर लपकार लिचारि.।
दारइया सूखी अवनि पर, रहि निवाना * बारितं 099)
सत्र के छक-रोम, पर, वारूं बेर अतंत्-।
अम्मत ले मुख, में गंदेथे।,- रास नास निज -तंत 09४0
* चरपा करते हैं । 1 अंतर का । ध्यान रखने से । ९ चराचर |
॥ चरसा । १ प्रथवी । ** कुचा या चावड़ी-। 11 पानी ।
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