दरिया साहब | Dariya Sahab

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Dariya Sahab by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सतमुर का लग पु मूढ़ काग समझ नहीं, माह साया सेज्रे । चून चुगावे -कोय्ली, अपना कर लेते ॥६०॥ चौसाखे नत॒ जान कर,. पिरथणी को जल देत । कथघह्ूं आावे चरत॒ बिना, उस चात्रिक के हेत ॥८॥ चनहर चरषे आय कर, देख पप्नीहा चाव । ज़िम दरिया सतगुर चले, देख साँहिलां काव ॥३९॥ सहा प्रताप सर पर तप, .करपा रख प्रो दॉस्या बच्चा कच्छ गुरू, जोये ही जीऊँ ॥६४०॥ जन दरिया गुरदेवजी, ऐखे किया निहाल । जेसे सूखी बेलड़ी, बरस किया हरियाल ॥ ४९ ॥ सतशुर सा दाता, नहीं, नहिं. नाम .सरीखा देव । सिणच सुमिरन सा चा करे, हो जाय अलख असेव ॥४२॥ जन दॉरंया सतगर करो, रास लाम को रोका । अमृत बूठा। सब्द का, ऊणगा परन बीज ॥2३॥ सतरुर बरषे सब्द जल, पर लपकार लिचारि.। दारइया सूखी अवनि पर, रहि निवाना * बारितं 099) सत्र के छक-रोम, पर, वारूं बेर अतंत्-। अम्मत ले मुख, में गंदेथे।,- रास नास निज -तंत 09४0 * चरपा करते हैं । 1 अंतर का । ध्यान रखने से । ९ चराचर | ॥ चरसा । १ प्रथवी । ** कुचा या चावड़ी-। 11 पानी ।




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