स्वर्ग से रत्न खंड -1 | Swarg Ke Ratna Khand-I

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Swarg Ke Ratna Khand-I by महावीर प्रसाद गहमरी - mahavir prasad gahmari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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में ज़ब तरे ज़सा गुलाम बन तव न तुझे सजा हे ? पर नहीं, में तेरे जसा गुलाम नहें। बनूंगा । म बादशाह द्वी रहूंगा मोर तुस माफ फरूंगा ! ग्रन्धुओं ! तम्र बादशाहफा यद्द दृष्टान्त दर्म यह মিআালা कि जब हम दूसरे आदमी पर गुस्मा करते हैं तथ दम भी অনা ऐसे वन जाते है और इस तरद्द सठके सामने सठ वगनेम क्या छ चतुराई दें ? या कुछ यहादुरों हू ? इसलिये आर फिसीपर गुरुसा फरनेसे पहले दर्मे अपनी पोजीशनका विचार फरना चाहिये । हम किस जातिके ই, হুমাহা ইহা कांन सा हें, दमाया क्‍या धर्म हैं, दम किस मरावापके छूडफे है, दम किन ऋषियाफे घेशमें उत्पन्न हुए हे, हमारी क्या शिक्षा है, हमाराफ्या द्रज़ा हे आर दम जिस आदमी पर क्रोध फर रहे द चद्द फोन दे ओर इस दुनियामे ऐसा क्या कसर दे कि जिसके लिये हम अपना मन बिगाड़ें इत्यादि बातें सोचनी चादियें । क्‍योंकि मिजाज पिगाड्नेसर मन विगडता दै भौर मनक ।विगाडनेसे सर्थेस्त्र बिगड़ता हैं, मन बिगाड़नेसे हमपर शैतानकी सथारी दो जाती है, मन ब्रिगाडुनेसे हमारी आत्माका बल ढक जाता है, मत बिगाइनेसे घमे ढोछा हो जादा है, मन बिगाड़नेसे फक्तेन्यर्म হজ ভীজানী ছু বাহ্‌ লল হলাভুলল হুল इृश्यरस লুজ द्वोज्ञाते हे। इतना हो नहीं वादिक मन दिगाड़नेखे नरफर्म আলা पढ़ता है और वास्थार जन्म लेना पडता दे | याद रखना कि हमन्‍्जो छोटो छोटा पाताप्त अपना स्वभाद दिगाड़ते हूं, शपना मिजाज गब्रगाड़त ६ आर अपना भूलभरा टेवॉफे अधीन रदते ८ इसीसे ইলা खराषो दोती ই । ऐसा न टोन देने लिये, सपने स्वमाधका काश्चन रलनेक दि इन ातोष्का स्याल र्ना सख्यि रके दम कोन द, ड द




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