विद्वद्रत्रमाला १ | Vidwadratrmala 1

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Vidwadratrmala 1  by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) ऊपर निन चार संधोका नाम वतलाया गया है, उनमेंसे सेन- ¡ नामक वंशम हमारे दोनो चखिनायकोने दीक्षा टी थी] सेन की किसी विश्वासपात्र पद्टावर्लके प्राप्त नहीं होनेसे हम सेनसं- ; प्रारंभसे उक्त चरित्ननायकीतककी गुरुपरम्परा नहीं वतला ते हैं । परन्तु विक्रान्तकोरवीयनाटकर्म हस्तिमलकविने जो नी प्रशस्ति लिखी है, उससे माठम होता है कि, गन्धहस्तिमहा- प्यके कर्ता स्वामीसमन्तभद्रके पंशर्मे ही भगवान्‌ जिनसेन तथा णभद्र हुए हैं । उसमे ट्लिा है कि, समन्तमभद्रस्वामीके शिर्वकोटि र शिवायन नामके दो शिष्य हुए ओर उन्हींकी परिपाटीमें श्री- रसेन जिनसेन तथा शुणभद्र अवतीण हुए | उस प्रशस्तिका कुछ ग यह्‌ ই: तत्वा्थसूजन्याख्यानगन्धरस्तिमवतेकः । स्वामी समन्तभद्रोभृदेवागमनिदरैकः ॥ अबटुतटमटिति श्रटिति स्फुटपटुवाचाटधूजटेजिहा । वादिने समन्तभद्र स्थितवति का कथान्येपाम्‌ ॥ रिष्यो तदीयो शिवकोटिनामा शिवायनः शास्राविदां वरिष्ठो । कृत्स्नश्रुवश्नीगुणपादमूले ह्यधीतिमन्तो भवतः कृतार्थों ॥ तदन्ववाये विदुषां वरिष्ठः स्यद्रादनिष्टः सकरागमज्ञः । भ्रीवीरसेनोऽननि ताकिंकशीः परध्वस्तरागादिसमस्तदोपः ॥ १, बहुत जेर्गोका ख्याल टै वक्कि कई एक कयाम्न्यो्ने भी लिखा है क शिवकोटिका दही दसरा नाम रिवायन था । परन्तु कविवर हस्तिमके क्यनेसे शिवकोटि और शिवायन दो ऊदे २ आवार्य सिद्ध होते हैं ।




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