विद्वद्रत्रमाला १ | Vidwadratrmala 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ )
ऊपर निन चार संधोका नाम वतलाया गया है, उनमेंसे सेन-
¡ नामक वंशम हमारे दोनो चखिनायकोने दीक्षा टी थी] सेन
की किसी विश्वासपात्र पद्टावर्लके प्राप्त नहीं होनेसे हम सेनसं-
; प्रारंभसे उक्त चरित्ननायकीतककी गुरुपरम्परा नहीं वतला
ते हैं । परन्तु विक्रान्तकोरवीयनाटकर्म हस्तिमलकविने जो
नी प्रशस्ति लिखी है, उससे माठम होता है कि, गन्धहस्तिमहा-
प्यके कर्ता स्वामीसमन्तभद्रके पंशर्मे ही भगवान् जिनसेन तथा
णभद्र हुए हैं । उसमे ट्लिा है कि, समन्तमभद्रस्वामीके शिर्वकोटि
र शिवायन नामके दो शिष्य हुए ओर उन्हींकी परिपाटीमें श्री-
रसेन जिनसेन तथा शुणभद्र अवतीण हुए | उस प्रशस्तिका कुछ
ग यह् ই:
तत्वा्थसूजन्याख्यानगन्धरस्तिमवतेकः ।
स्वामी समन्तभद्रोभृदेवागमनिदरैकः ॥
अबटुतटमटिति श्रटिति स्फुटपटुवाचाटधूजटेजिहा ।
वादिने समन्तभद्र स्थितवति का कथान्येपाम् ॥
रिष्यो तदीयो शिवकोटिनामा शिवायनः शास्राविदां वरिष्ठो ।
कृत्स्नश्रुवश्नीगुणपादमूले ह्यधीतिमन्तो भवतः कृतार्थों ॥
तदन्ववाये विदुषां वरिष्ठः स्यद्रादनिष्टः सकरागमज्ञः ।
भ्रीवीरसेनोऽननि ताकिंकशीः परध्वस्तरागादिसमस्तदोपः ॥
१, बहुत जेर्गोका ख्याल टै वक्कि कई एक कयाम्न्यो्ने भी लिखा है क
शिवकोटिका दही दसरा नाम रिवायन था । परन्तु कविवर हस्तिमके क्यनेसे
शिवकोटि और शिवायन दो ऊदे २ आवार्य सिद्ध होते हैं ।
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