भारत दर्शन | Bharat Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
377
श्रेणी :
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जीतमल लूणिया - Jitamal Looniya
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लाजपतराय - Lala Lajpat Rai
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शथे आरत-दन्॑न 1 ~
प्लीनी नामक अन्थकार जो ईसची सन ७७ में हुआ, इस आत
पर बडा दुःख पध्रगट करता है कि रोमद लोग फजल-राच
ओर विलास प्रिय द्वोत्ते जाते हैँ 1 वे इत्र आदि सु्गान्धित द्वव्यों
तथा बडिया चसत्र और जेवर आदि में इतना बेशमार राख
करते हैं कि कुछ पूछिए नहीं । कोइ साल पेखा नदं जाता
जिसमें हिन्दुस्तान रोम से करोड़ों रपया न खींचता हो ।
मामसेन ঘন «42৮02776527 476 222722% 2257/2756 >
जामक अन्ध में लिखता है फ्रि हिन्दुस्तान से रोम को शति
चे ४०,००,०००) पौएड मूल्य को विलास सामग्रों आती थीं।
हिन्दुस्तान से गोम को प्रधानत सुगन्धित द्रव्य, रेशमी অহ
चबढिया मलमल आदि जाती थी। इनके अतिरिक्त रोम में
अद्रफ की माँग भी बहुत थी। प्लीनी लिखता दे कि यद
खोने और चॉदी की नरह तोलकर বলা जाता था।मि०
बिन्सेस्ट स्मिथ दक्तिण भारत और रोम कर बीच में টান জাজ
व्यापार के विषय में लिखते हैं --
“तामिल भूमि का यदसरोभाम्य है कि वह् तीन पेखी सूल्यचान
यस्तुये उत्पन्न करती है जो अन्य स्थान में श्रप्राप्य है काली
मिचं मोत्ती शरीर पिरोजा ( 6०९४7 ) 1 कालौमिय यूरोप के
बाजारों में बड्े दामों पर दिक्ती है । दृक्तिय भारत में मोती
निकालने का उद्योग धजारों बर्ष फे पदले भी बडी सफलता के
साथ বল কা খা । दक्षिण हिन्दुस्तान के पैंडिपुर ग्राम में
पिरोजा फी जो खान ह, उसीसे ध्राचीन सूखार पिरोजा प्रा
करता था | प्लीनी ने भाय्तवर्ष को जयाहिरात का फेन्ट्रस्थान
कहा है 1 खसार का सबसे महान और सबसे अधिक
मरूर्ययान दोय कोहेनूर! जो ससारके अनेक देशों में चघूमता
ছুক্সা ভুতু यर्षो सालडन पहुचा তত मूल म मारत्वध होकायथा |
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