सत्याग्रह और विश्व - शांति | Satyagrah Aur Vishwa - Shanti

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Satyagrih Aur Vishva - Shanti by रंगनाथ दिवाकर - Rangnath Diwakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्याग्रह का महत्व सत्याग्रह एक ऐसा शब्द है जिससे हम काफी परिचित हो चुके हैं। क्रियात्मक रूप से यह शब्द गॉधीजी के नाम का पर्यायवाची बन गया है। सबसे पहले १४६०६ ई० में गाँधीजी ने ही इस शब्द का प्रयोग अिसात्मक-प्रतिरोध-आन्दोलन के अर्थ में किया जिसका नेदृत्व उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के अन्याय और मेदसावपूर्ण काननू के विरुद्ध किया था । उन्हें शीघ्र ही मालूम हो गया कि उनका आन्दोलन निष्क्रिय-प्रतियोध से साररूप से सिन्न है इसीलिए उन्होंने यह नया शब्द रचा। पाश्चात्य देशों की ऐतिहासिक प्रष्ठभूसि में निष्क्रि-अतिरोध का जो अथे समझा जाता है और जैसा हम अब समभते हैं वह एक दुबेलों निःशस्त्रों और असहायों का अस्त्र है । वहाँ दिंसा का परित्याग सिद्धान्त के रूप मे नहीं बल्कि हिंसा के साधनों के अभाव में या केवल ज़रूरत के कारण किया जाता है । चह्द सत्र का प्रयोग उस अवस्था में कर सकता है. जब बे प्राप्य हों या जब सफलता का युक्तियुक्त अवसर हो । निष्क्रिय-प्रतिरोध सशस्त्र- प्रतिरोध की तैयारी में या उसके सहयोग में भी हो सकता है । इसका भीतरी उद्देश्य शत्रु को परेशान करना होता है और इस भकार यह उसे क्रियाकलाप के अभीष्ट मागे काझलुसरण करने के लिए बाध्य करता है । उसमें प्रेम के लिऐ तो कोई स्थान है ही




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