महबंधों | Mahabandho

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बंर्धसण्णियासपहवर्णा बह ও . ओराॉलि०्अँगो ०-पज्जरिं०-पंसंत्थापसत्थ5८४-तिरिकखाणु०-अगु ० ४-पसत्थ४-तस०४२- - 'थिरांदिंल्ले०-णिमिं० णिय ० ` अणतशु० । नह | १३५. अप्पसत्थ ० ভূ লও णिरय०-तिरिक्ख०-असंप ०-दी आणु ० सिया० | तं त° चंद्राणपदिदं० . 1 पेचिदि०तेना०-क०-पसत्थ ०४-अजच ० ३-तसट-णिमि? णिंय०.- अण॑तगुणहीणं० । ओरालि०:चेउव्वि ०-दोअंगो ० “उज्जो ० सिया० अ्ण॑तयण- हीणं० । . हुंड०-अप्पसत्थवण्ण०४-उप०-अधिरादिलु० णिय० ते तु० छद्ठाण- पदिंदं० | , एबं. हुस्सर० |... :. .. - हू व १७५ 'छुहुम० तिरिक्ख ०-एईंदि०-ओराछि०-तना ०--क ०-हुंड ०- ভিন সক ३ -अणं॑तगुणहीणं० |. .अंपज्न०-साधार० .णिय० 1 ते. तु०..छुँद्ाणपदिदं० 1. -एवं अपल्नत्-साधारण० । प॑चंतराइंयार्ण णाणावरणभंगों । १५, ,णिरएस संत्तण्णं कम्माणं, ओघ॑... तिरिक्ख०, उं० बं० पंचिदि०- পো ~ ~~~ ~~~ ^^ সর ५ वाला जीव तिय॑त्रगति, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तेन्नस शरीर»: कामण शरीरं; स्म- चतुरस संस्थान, ओदारिक आज्ञोपाह्न, वेजपम नाराच संहनन, प्रशस्त वणं चतुष्क, अश्र॑शस्ते ... बण चतुष्क, तिय्गत्यालुपूर्वी, अंगुरुलंबु चतुष्कं, प्रशस्त विहायोगति, अंसंचतुष्क, स्थिर आंदि লহ और निर्माएका नियमसे वन्ध करता है जो अनन्तंगुंण हीन -अतुच्ृ्ट ` अनुभागकरा ভল্্ 'करता है । | ध प्रशस्त विहायोगतिके उ्छरष्ट श्रनुमागका वन्ध करनेवांल्ञा जीवं नरकगति, ' तियेच्चं- गति, अंसम्पप्तारुपंटिका संहर्नन ओरे 'दो आनुपूर्चीका कदाचित्‌ बन्ध कंरता है । यदि वन्धं करता है तो उत्कृष्ट अनुभागका भी बन्ध करता है ओर अलुल्कृष अनुमागका-भी वन्‍्ध करता है! , यदि अनुकृष्ट च्रनुभागका , वन्ध करता हे - तो वहं छह स्थान पतितत हानिको लिये हुएं होता है। प्च न्द्रिय जाति;. तेज्ञस शरीर, कामेश शरीर; प्रशस्त वणं चतुष्क, --अगुरुलयघु त्रिक, चरसचतुप्क ` ओऔर निर्माणका नियससे জন্ম करता है जो अनन्तगुणे . दीन : अचुक्छृषट श्चज्ुमागको জিত ভুত .. होता है। श्नौदारिक.शरीर्‌; वेक्रियिक. शरीर, दो आङ्गोपाङ् ओर उद्योततका कदाचित्‌ बन्ध करता . है. जो अनन्तगुणे दीन अबु अदुभागको लिये हए दोता हे । हुण्ड संस्थान, च्रप्रशस्त वर्णं चतुष्क ` उपात्त चनौर अस्थिर श्रादि छंहका नियमसे चन्ध करता है । . किन्तु.वदह उत्क2 अनुभागका भी . बन्ध करता है ओर .अनुत्कट अनुभागका भी , बन्ध्‌ करता है । - यदि अलुक अनुभागका वन्ध करता हे तौ वह्‌ छह स्थान पतित - दानिको लिये हृए होता :है ॥ ,इसी शरक्रार ठढःस्वर प्रकरतिकी ` ` सुख्यतांसे सन्निकषं जानना चादिए 1; ..... `. १४. सू्मके . उच्छृ अनुभागक्ा वन्ध करनेवाला. जीच तिर्य्रगति, एकेन्द्रिजाति, ` . श्रौदारिकरिशरीर, तेजसशरीर, कार्मणएशरीर, दण्ड संस्थान, प्रशस्त वरणचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क वियेच्गत्यानुपूर्वी, अरुरलघु, उपघात, स्थावर, अस्थिर आदि पांव -मौर नि्माएक! नियमसे चन्ध करता है जो -श्रनन्तगुरे दीन अनुत्कृष्ट, अनुसागक्ों लिये हुए होता है।. अपर्याप्त और - साधारणका नियमसे वन्ध करता है.। किन्तु वह उत्हष्ट : अनुभागका - मी वन्ध करता है ओर अनुत्कुष्ट अचुभागका भी ভল্ত কলা ই | यदि अलुत्तष्ट अनुभागका-बन्ध-फरता है तो चह छुटद - स्थान्- पतित' हानिकों लिये हुए होता है। इसी अ्रकार . अपयाप्त और साधारणकी सुख्यतासे . सन्निकर्प जानना चाहिए। पॉच अन्‍्तरायोंकी सुख्यतासे सन्निकर्पका भट्ट ज्ञानावरणके समान है | . .. ९५. नांरकियोंमें सात कर्मोका भंग ओघके. समान है। तिर्यश्वगतिके उत्कृष्ट अनुभागका




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