सामायिक सूत्र | Samyik sutra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ विर्व क्या है ? प्रिय सज्जनो । यह जो कूच भी विश्व-प्रपच प्रत्यक्ष अभ्रथवा परोक्ष रूप मे आपके सामने है, यह क्या है ” कभी एकान्त में बैठकर इस सम्बन्ध में कुछ सोचा-विचारा भी है या नही ” उत्तर स्पष्ट है--नही' । झ्राज का मनुष्य कितना भूला हुआ्ना प्राणी है कि वह्‌ जिस ससार मे रहता-सहता है, भ्रनादिकाल से जहाँ जन्म-मरण की ्रनन्त कृडियो का जोड-तोड लगाता श्राया है, उसी के सम्बन्ध मे नही जानता कि वह्‌ वस्तुत क्‍या है ”? आज के भोग-विलासी मनुष्यो का इस प्रश्न को ओर, भले ही लक्ष्य न गया हो, परन्तु हमारे प्राचीन तत्त्वज्ञानी महापुरुषो ने इस सम्बन्ध मे बडी ही महत्वपुणं गवेवणाए की है । भारत के बडे-वडे दाशेनिको ने ससार की इस रहस्यपूणं गुत्थी को सुलभ्राने के रति स्तुत्य प्रयत्न किंएहै ग्रौर वे अपने प्रयत्नो मे बहुत-कुछ सफल भी हुए है 1 जेन दृष्टि क परन्तु, भ्राज तक की जितनी भी ससार के सम्बन्ध मे दाशेनिक विचारधाराए उपलब्ध हुई है, उनमे यदि कोई सबसे श्रधिक स्पष्ट, सुसगत एव तकंपूर्ण स्पष्ट विचारधारा है, तो वह केवल ज्ञान एव केवल दर्शन के धर्ता, सर्वज्ञ, स्वैदर्णी जैन तीर्थद्धूरो की है। भगवान्‌ ऋषभदेव आदि सभी तीर्थडूूरों का कहना है कि “यह विश्व चैतन्य और जड रूप से उभयात्मक है, अ्रनादि है, अनन्त है। न कभी बना है और न कभी नष्ट होगा। पर्याय की दृष्टि से आकार-प्रकार का,




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