कविता कलाप | Kavita Kalap
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कविता-कलपं ।
जाणण्यास জল এ উস
২২ দহতুহাল |
( १)
शिखा सूत्र के संगशस्त्र का मेल बिलोको ;
निपट विप्र घर-बढ़े न जानो सरल द्विजो को ।
पूवे-काल मे वेद-मंत्र थे कड़खे रन के ;
सेना-नायक, शूर, कुशल छविज, ऋषि, मुनि बन के ॥
(२)
लख सरोप स्वाधीन भाव इस मसुख-मंडल का
मिलता है सब पता पूव-पुरुषो के बल का ।
ध्वा तेज यो चह्य-तेज में यहाँ भरा है
शॉत-चीर-रस-कटक संग मानो उतरा हे ॥
३
भैंहि तनों, कटाक्ष गन म , निचय जो का
हम सब को संवाद खुनाते है यह नीका--
गहो आप बल, बुद्धि, तेज, साहस, प्रभ्ुताई
चल जीवन के लिए करो मत आइशश पराई ॥
(४)
एर सहसा यह रूप देख होता है विस्मय--
आये-लोग क्या एक समय थे ऐसे नि्सेय !
क्या হুল सब जो आज बने है निर्बछ कामो
रहते धे स्वाधीन खमरमे दोकर नामी ॥
(५)
जो हो, यह सब परशुराम ने कर दिखाया ।
छत्रिय-दुल वा रक्त नदी सा शुद्ध बहाया |
नदों पक दो बार, बार इक्कीस समर में
सोय क्श्चिय-वीर करोडो काल-उदरमे॥
(६)
अहंवगार उददड् निरंकुश प्वचिय-गन दत
लगा न मुनि वी सला, सोच मे माथा ठनका |
दिवश राध्य ने युद्ध रक्षयों से तब ठ ना
भाला से मिड মৃত गया भाला निज बाना ॥
( ७ )
विद्या-मय बल देख निरा बट पट मे लागा.
समर-सेज परसोयटाय ! पिर दमी न जाया |
तो भी मनि मे राज्य-लोस मे तञ्जी न वेदों .
छार छार जय-भूमि सटज्ञ दिश्नो को दे दी ॥|
१०.
भा मय्,
(८)
लिये एक में शस्त्र, अन्य कर मे कुश-पानी,
जीत-दान के लिए रहे तत्पर मुनि ज्ञानी ।
पृथ्वी कंपित हुईं नाम से परशुराम के ;
सहमे सदा सभीत निवासी देव-धाम के ॥
(९ )
भली नहीं ই किसी कार मे विप्र-अवज्ञा ;
द्विज सदु दो फट कुपित करं हे शाप-प्रतिक्ञा ।
जो रोते ये करीं सबल सव, तो पट-भर मे
खाते खञ ससार खौच कर एकः नगर मे॥
( १० )
हुआ समय का फेर हाय | परटी परिपाटो ;
जो थे कभी सुमेर आज हे केवल मारी |
क्षत्रिय-कुल निवेश सहज मे करनेहारे
» परशुराम मुनि निरे राम बालक से हारे ॥
९५- अहल्या ।
( १९)
काम-कामिनी सी छवि-रादमी;
उपवन की छहल्हों छता-सी।
गोतम-मुनि की यह नारी है,
पति के प्राणों से प्यारी है ॥
(२)
रहती है यह मुनि-संग बन में;
ই, रु রদ क्त कक
पम-गये कौ मानो मनम)
पति को प्रवल प्रीति कः चन्दर पग;
कानन रस नगरः र
( २ )
सनि की दिद्य देश क ट्र
नहा चारन ग्य পাশা |
বরন >
गन्दरग
ह
श्य ~
न রি আছি ज हि টি छ
শি > क
न्न्य ऋः सर हा পর ৩৩ म পু উঃ এ कक
रन न ण्य म्न হু :
User Reviews
No Reviews | Add Yours...