दलित - संघर्ष के महानायक | Dalit Sangharsha Ke Mahanayk

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Dalit Sangharsha Ke Mahanayk by एम. पी. कमल - M. P. Kamal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सबके दिलो में राम-नाम की ज्योति जगाओ । ईश्वर तुम्हारा कल्याण करे ।”' रविदास गदृगदू हो गए। उन्होंने गुरु को साप्टाग दडवत्‌ किया और फिर उनके चरणों की रज लेकर अपन माधे पर चन्दन की तरहें लगा ली । स्वामी रामानठ जी अपने आश्रम की ओर चले गए और रविदास अपनी कुटिया की और । स्त्रियों को ज्ञान व भक्ति का अधिकार रविदास जी दड़े उदारमना व्यक्ति थे । जब तक उन्होने विवाह नहीं किया था, तब तक वे अपना पूरा जीवन ज्ञान-भक्ति और जाति-धर्म मुक्त समाज निर्माण के लिए लगाना चाहते थे, परन्तु शादी करने के बाद उनके मिशन से एक लक्ष्य जोर शामिल हो गया । बह घा-स्त्रियो को ज्ञान और भक्ति को अधिकार दिलाना । नारी को वे उसी तरह दुखी और प्रताडित मानते थे जैसे सवर्णों के समाज में शूटर रह रहे थे । सवर्ण पुरुपो को ही सारे अधिकार प्राप्त थे । स्त्रियाँ बाहर म निकले, दूसरों से मिले-मुल नहीं, इसलिए उन्होने उन पर बंदिंशे लगा रखी धी। सवर्ण अपनी स्पियो को अपनी इज्जत मानते थे। इसीलिए वे उन्हे अधिक अधिकार देने को तेयार न थे। रविदास ने सबसे पहले अपने घर से शुरुआत की । उन्होंने अपनी पत्नी को ज्ञान और भक्ति के कामों में खुलकर भाग लेने के लिए प्रेरित किया । रविदास जी फी पत्नी ने अन्य महिलाओ को इस पवित्र अधिकार को आगे बढकर प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया । रविदास ने नारियो से कहा--“आप यह न भूले कि सध्यिो से पुरुष समाज ने आपके अनेक अधिकारों से आपको वचित रखा है । शिक्षा और भक्ति का अधिकार भी आपसे इसीलिए छीन लिया जाता है कि वे आप पर विश्वास नहीं करते । मै कहता हूँ यह अन्याय है। नारी पुरुप की सहचरी है। उस पर पूरा विश्वास किया जाना घाहिए और उसे सभी अधिकार मिलने चाहिए । शिक्षा और भक्ति के बिना तो जीवन ही बेकार है। शिक्षा व्यक्ति को ज्ञान और विवेक देती है, भक्ति उसका परलोक सुधारती है। जिस प्रकार इहलोक और परलोक सुधारने का हक पुरुष को है, उसी प्रकार वह स्त्री को भी होना चाहिए ।”' रविदास अपनी धुन के पक्के थे । वे खाली उपदेश देकर ही नहीं रह गए। वे वहुत आगे बढ़े । उन्होंने बडी सख्या में स्त्रियों को ज्ञान और भक्ति मार्ग पर आगे बंढने की प्रेरणा दी । मीराबाई को भिष्यता नारी उत्थान की और नारी मुक्ति की भावना उस समय कोई सामाजिक आदोलन नहीं बन पाई थी । यह चह समय था जव भारत में यमन आ चुके थे ओर 16 1] दलित सथर्घ के




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