जपसूत्रम भाग 1 | Japsutram Bhag - I

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Japsutram Bhag - I by महामहोपाध्याय डॉ. श्री गोपीनाथ कविराज - Mahamahopadhyaya Dr. Shri Gopinath Kaviraj

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about महामहोपाध्याय श्री गोपीनाथ कविराज - Mahamahopadhyaya Shri Gopinath Kaviraj

Add Infomation AboutMahamahopadhyaya Shri Gopinath Kaviraj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जपसूत्रम्‌ की आत्मकथा ५५. कर्म इत्यादि एक-एक मृ भाव किस प्रकार अपने विचित्र विकास और परि- णति तक पहुँचा हैं-इसके तथ्य एवं तत्त्व का विश्लेषण-समन्वय करते हुए कुछ खण्डों में इतिहास लिखने की वासना हुई । किन्तु भूमिका-ग्रन्थ “इतिहास ओ अभिव्यक्ति” प्रकाशित होने के वाद सृप्टि, ब्रह्म इत्यादि के सम्बन्ध में अन्यान्य सुविस्तुत लेख कुछ दूर तक प्रस्तुत हो कर भी प्रकाश्य आलोक के मुख-निरीक्षण का भाग्य नहीं पा सके । उसके वाद संन्यास-जीवन में सभी कुछ का आमूल पट-परिवत्तन टौ गया । तरुण एवं परिणत वयस्‌ का वह विद्या-रस अपने को व्यान-रस और भाव-रस में खो वेठा । ग्रन्यादि-पाठ और अनुशीलन की बह प्रवृत्ति जसे ही एक ओर निःशेप हुई, वसे ही दूसरी ओर चाक्ष॒प दृष्टि का भी ह्वास हुआ | यही हुई संस्कृत में 'जपसूचम्‌' की आवार-प्रस्तुति। जपसूत्रम्‌ नाना शास्म्रों के अधीत-विद्य पगण्डित का विरचित ग्रन्थ नहीं हे, श्रद्धालु अनुग॒हीत का अनुध्यात ग्रन्य है। बाहर से निवृत्त दृष्टिमति आन्तर अध्यात्म-संवाद म, ही निविष्ट हो गई हूँ, यद्यपि व्याख्या में विज्ञानादि वहिविद्या के साथ प्रसद्भूत: समझना-वूझना पड़ा हैं । जपसूत्रम्‌ परमात्मा की इच्छा से शेप हो चला हूँ। ग्रन्य ६ खण्डों में विशाल भी है अवश्य । किन्तु और भी सुविज्ञाल नहीं हो सका, इसलिए इसमें भी 95761896010 ए]110850077 का स्वप्नः पूर्णाद्धः मूत्ति में वास्तव नहीं हो मक्ता! सूत्र एवं कारिकावली में उस विराट समन्वय का दिग्दर्यन-सूत्र सम्भवतः मिल गया, किन्तु अनवगाहित महारहस्थवारिधि इस के पुरोभाग में रह गया । ग्रन्थ की व्याख्या में वेद-तन्त्र-पुराणादि के तत्व और चर्या (1९07५ शाते [99०६10०७) दोनों के वियय में अनन्त अगाघ रहस्य का कितना-सा अंग यहां खोल कर देसा जा सका हैं ! प्रसद्भतः सूत्र के प्रयोग एवं दुष्टान्त দলুন में यत्किड्न्चित्‌ दी हुआ हैँ । बह জ্বাল বী 010৮10- {112 (वरिन्ववेपात्मक) ह । भावी विधाता यधासमय उस काम को अपने 262 ६ न्क ग्द रा क পু ২ ~> नारः নান य्य ट ८९ + [




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now