भाव संग्रह | Bhavsangrah

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Bhavsangrah by चांदमल चुडीवाल - Chandmal Chudeevalलालारामजी शास्त्री - Lalaramji Shastri

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लालारामजी शास्त्री - Lalaramji Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) करते हैं यह भाश्चये है । पहले के उत्तम संहनन से जो कम॑ हजारों वर्पो मेँ नष्ट होतेथेवे क इस्र समय दीन संहनन के क्षरा एक वर्ष में नष्टं हो जति | दस उपयु क्त कथन से सिद्ध है किं भाज कलं के मुनिगण स्थविर कल्यी सुनि ई वे दिसक जन्तुं से भरे हुए जंगलों में रहकर निर्विघ्न धमे ध्यान करने में सर्वथा. असमर्थं दै इसलिये वे नगरों में, उद्मानों में,मंदिरों में, मठों, वगीचों आदि से रहते हैं 1 यह वर्तमान शक्ति द्वीन संहनन के लिये समुचित शास्त्र, দান है। जो लोग वतेमान भुनियां पर नाना आशक्षेप करते हैं उन्हें इन महान्‌ पृ्चिार्या के शास्र विधानां से अपना समाधान कर वर्तेमान मुनियों में उसी प्रकार श्रद्धाभकित से देखना चाहिये जैसी कि चतुर्थ कालबर्ती मुनियोँ पर रहती है। शरीर सामथ्ये को छोड़कर बाकी चर्या और भात्रों की विशुद्धि वनमान मुनियों में भी आरच्य काल के समान द्वी रहती ह । इन दिगन्वर वीतराग मदपिं चाय देवसेन गणी का स क्षिप्र परिचय भाई नायृराम जी प्रेमी के ছাতা लिखा हआ माणिकचन्द्‌ গল্ধনালা के मुद्रित ग्रन्थ नवचकर संग्रह के आक्रथन का उद्धरण देने हुए हमने लिखा है । 7 थाचार्य देवसेन की रचना में महत्त आचा देवसेन ने अपने वनाए हुए श्रन्थों में द्रव्य गुण पर्यायां का वहुत द्वी गंभीर-विवेचन किया है| नयों के गहन एवं सूछम विवेचन में जिन अपेक्षा वादों का निदशन किया हे তলব उनकी अगाध विद्रत्ता का परिचय सद्ज मिल जाता दे | गुणस्थान




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