सरस्वती - वरदपुत्र पं. बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन - ग्रंथ | Sarasvati - Varadputra Pt. Vanshidhar Vyakaranacharya Abhinandan Granth

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Sarasvati - Varadputra Pt. Vanshidhar Vyakaranacharya Abhinandan Granth by डॉ. दरबारीलाल कोठिया - Dr. Darbari Lai Kothia

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्पादकीय दिद्ानू सर्वत्र पुज्यते इस उद्तिके अनुसार विद्वानोका समादर सदासे ही होता भाया है । विहानु फिसी एक देश फिसी एक धर्म किसी एक जाति अथवा किसी एक सम्प्रदायका नही होता क्योकि उसके प्रवभनों छिखी पुस्तकों एवं वाणोसे सभी लाभान्वित होते हूं इसलिये बह जहाँ भी चला जाता है वही उसका सम्मान होने लगता है । टुमारे आचायें साधु एवं पंडित अपनी जातिसे नही बल्कि अपने गु्णोंसे समादृत होते हैं। उनकी न कोई जाति पुछता है भर न प्रदेशका नाम जानता है । उनकी जञान-साधना ही उनका परिचय है उनकी जेयनी ही उनके गुणोफों उजागर करने वालो है ओर उनकी वाणी ही उनके जीवनपर प्रकाज डालने वाछी होनी हू जमे हीरेको कितना ही छुपाया जावे वह कभी भी नहीं छिपता हैं उसी प्रकार साधु एवं विद्वानु भी यदि अपने आपको छिपाना चाहे तो गुणीजन उनको स्वयं खोज लेते हूं और फिर उनकी प्रद्स्तियाँ पढ़ने लगते है । ऐसे ही एफ विद्वान है पण्डित वशीघरजी व्याकरणाचाय । वे पण्डित है ज्ञानके अगाघ भण्टार है सधकत लेसनीके घनी है चाणीमें अपने विचारोकों सम्यक्‌ रूपसे प्रकट करनेकी क्षमता है समाज एवं देवके लिये उन्होंने जेल यातनाभोंको सहा समाजमें आगम-परम्पराकों सणक्त वनानेके लिये सर्देव आगे रहें तथा अपने ८४ वसन्तोमेंसे ६० पसन्त समाजसेवा एवं ज्ञानाराघनामे व्यतीत फिये । लेकिन फिर भी उनमें कीति यथा एवं अभिनन्दनकी फभी चाह पैदा नहीं हुई और स्वात सुखाय अपनी सम्यक्‌ प्रवृत्तियोंमि लगें रहे । शानाराघनाम लगे हुए विद्वानों सन्तोंको खोज निकालना भी सरल कार्य नहीं हैँ क्योकि वर्तमान युगम मानव अपनी यदा कामनाके पीछे इतना पढ़ा रहता है कि जीवनमें एक पुस्तक लिसनेपर बह अपने लाएगने सबने बडा ऐखक समझने लगना है तथा चाहता हैं कि समाज एवं देश उसकी प्रशंसाओका पुर सांप दे तथा उसका पपा धार्य ही जीवन भरकी कमाईका साघन चने जावे । लेकिन पण्टित बंशीघरजी स्याफरणायारंगत स्वभाव एवं प्रवृत्ति ठीक इसके विपरीत है । वे यद्यसे टूर भागते रहे और नपने अभि- मग्दमगे हमेंणा पमरातें रहे । यदि डॉन कोठिया साहब उनसे वार-वार अनुरोध नटी करने हम उन्द्ें अपना समिनव्दनीय सागरर सपने बहुमूल्य हतित्पसे समाजयों लाभान्वित सरतेका अनुरोध नहीं करते तो सम्भवत दे नियन्दसन्यर्थ प्रकादानकों स्वौजति भी नहीं देते । तय हमने उनसे बहा लि अभिनन्दन-सस्थम ध्यरवी पररंसा गहोनकेन्वरादर होगी भविसु प्परी छेरनफकि चमत्फारका दिस्दर्थन साम्र रेसा । पाएंगे दारा सो पुए रद दिउ दा चुरे है. लग जो विशिरत पथनपणिवाओोंम छपनेगे पइसात भी लिरोहित हो गये है । समा जिसमें शर्पिरर जनरपदा दस यथा है और जिनके प्ररारानकी ब्तेसान दानाप्रणरं बहुल खरे प्यार ही अपरद सभी सारण प्रयोग सस्यग प्रपररते ससाऊकों परियय सिद ससरगा । इसेप्रेए एटा शार एस उनसे रराइय सेशनीदे समतपत्सर फिएरण छपेर आायत्यरता है । या सार मदर अभिनारदर ड््न माल लाना है 7 समयरे प्राय थिएी राये है 4 हसारे हर पनुसोपरों स्दीपार पर रिया सौर मापन सरिगर बहा हू हैं ग गे कप ग्न्की झ््पु ंै च्क् माह ६ रस एम सिदासों एवं मार्यरासिस नि के शेड प्रसप्नता है दि पिरवजी पाक दो शु् सुपर पवार फेर पल उनरें पास रो. उन्हें हस्फडिदडोड शस्सगाइ दर से न दर कवर रण रह उमर पाम रह ड्हे हल शोडियरडाड मसगाड़ बार पंप 1 मद रस इरभररपा न्सम्द्शा हद ि ज्ग च्क हा जग्टण शच्डिमड ्रक्ः मनन हर छः ७० पक सर्म्ला पल उग्टए है 1 टच्डिससर ड्नल्स हास्टार रुपनराश




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