नये बादल | Naye Badal

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Naye Badal by मोहन राकेश - Mohan Rakesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सये बादल जा रहे है । कुछ देरके बाद बातचीत रुक गयी भर चोधरीके पास झ्रागे बढनेके लिए म्रपनी कल्पना ही रह गयी । धीरे-धीरे वर्षा धीमी पड गयी । जब वर्षाका दाब्द बिल्कुल रुक गया तो चौधरी बाहर जानेके उद्देद्यसे अपने स्थानसे उठा । उसने टटोल कर ्रपने कोटकी जेबसे माचिसकी डिबिया निकाली श्रोर एक दियासलाई जलायी । दियासलाई कुछ श्रस्पष्ट-सी रेखाएं दिखाकर जलते ही बुझ गयी । उसने दूसरी दियासलाई जलायी और हाथकी झ्रोट करके उसे ठीकसे लौ पकड लेने दिया । हाथ हटाने पर उसने देखा कि वे तीनो दो दरियाँ साथ-साथ बिछा कर उन पर सो गये है । वह कुछ क्षण झसमजसमें खडा रहा । फिर कमरेसे बाहर निकल आया ॥ हुल्की-हल्की श्रब भी पड रही थी । सतलुजके बहनेका दाब्द अब अधिक स्पष्ट सुनायी दे रहा था । बाहर भ्राते ही चौधरीके शरीरमे हत्की-सी क पकेंपी दौड़ गयी । आसपासके कमरोका वातावरण नि स्तब्ध प्रतीत हो रहा था । केवल दो नबर कमरेके बाहर बैठी हुई एक रो।गणी कुतिया बिलबिला रही थी । चौधरीने क्षणभर रुक कर सोचा श्र फिर धीरे-धीरे चार नबर कमरेकी दहलीज तक चला गया । उस कमरेमें कई बिस्तर बिछें हुए थे--एक बिस्तर तो बिल्कुल दहलीजके साथ सटा हुभ्रा था । चोधरीने एक दियासलाई जलायी । उसके दियासलाई जलाते ही दहतीजके पास सोया हुआ व्यक्ति हडबडा कर बोल उठा कौन है क्या कर रहा है इस वक्‍त यहाँ ? चौधरी वहासे उल्टे पाव लोट पडा । उसका फिर किसी कमरेमें जानेका साहस नहीं हुआ । उसने क्षण भर प्रपने कमरेके बाहर रुके कर सोवा ओर यह निश्चय किया कि लोगोकों जगा कर उनसे बात करनेकी शपेंक्षा चोकीदारकों जगा कर उससे बात करना ज्यादा अच्छा है । वह चौकीदारकी कोठरीकी श्रोर चल दिया । वहाँ पहुंच कर उसने दो बार उसको दरवाजा खटबटाया पर चोकीदारकी श्रा्व नहीं खुली । चौधरी साथ उसे ग्रावाज भी देने लगा ।




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