उरु - ज्योति | Uru Jyoti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ संप्रश्न
यद् विसृष्टि कहाँ से उत्पन्न हुई हैं? यह जन्मी भदै या
नहीं १ जो परम व्योम मे इसका सान्ती द्रष्टा, बदरी इसे जानता दै ।
वद् भी जानतादहैयानदीं?
क्या सानवी-सादित्य मे पेसे शब्द् मित्त सकते हैँ, जो इनसे
अधिक उद्यत्त, इनसे अधिक विषादं, इनसे अधिक श्योजसयी,
इनसे अधिफ निष्ठा-पूर्ण और साथ दी इनसे अधिक डरावने हों?
जीवन-प्रवाद के पारम्भ में द्वी कहाँ इस प्रकार पूर्णतम विवि से
मनुप्यों ने रपनी अज्ञता को एकान्ततः स्वीकार किया है १ सदत
वर्षा से बढ़ने बाले हमारे गम्भीर संशय ओर संदेद्दों की परिधि
क्या कहीं इतनी विशाल बन सकी है, जितनी यहाँ है ? श्रव तक
इस दिशा में जो छुछ कहा जा सका है, उस सब को फीका कर देने
बाले हमारे ये उपः:फालीन वाक्य हैं। और कदी ऐसा न दो कि
जटिल संप्रश्नों के पथ पर चलते हुए, हम भविध्य में निराश हो
चैंठें, इसलिए नासदीय सूक्त के ऋषि ने, संशयवाद के मागे भें
निर्भयतापूर्वक उससे भी कहीं अधिक कह डाला है, जितना हम
भविष्य में कभी कह पायंगे। वह इस ग्श्न के पूछने में भी नहीं
हिचकिचाता कि ब्रह्म को भी इस सुप्ठि का या अपने किये का ज्ञान
है अथवा नहीं।
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