सुधांजलि | Sudhanjali

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Sudhanjali by गोपी नाथ कविराज - Gopi Nath Kaviraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ कहाँ गयो नंदलाल यशोदा कहो उचधो यह तो कहो कटो तो सखी, कौन संध्या सकारे काहे करे गुमान रे मन तू काद्दे की चिता मन मेरे कितनी दूर है और खिचैया किस गुणा का तू मान करे:मन कैसा मन यह बावरा री सखी कैसी लगन लगाई तू ने कौन यतन भु पाऊं तोहे क्यूँ नेना तरसं द्रशानको क्यूं माटी की कायामें -. जन्माश्टमी --. खोल दे मंदिर द्वार पुजारी मुणा में कैसे गाऊँ सद्र्ग॒ुरू गुरू-चरणान संग लागी मीरा गोल की इक बात पुरानी चरणा तेरे कमल मोदन चल चल री वदां जनम मरके नाथ हमारे जनम मरराके मीत मारे जय जय छझुन्दर नंदकिशोर जा सांयर से कह दे পান सखी, कल आधी राती जित चाहो उत राखों, प्रभुजी লিল পিছু म॑ तेरी, प्ुजी जिन एक हरी की आश लभी जिन भीत लगी हरी संम सखी जिन हृदय बसे गोपाल सखी जिस मनने ली है, तोरि शरणा जीवन है पाया जिस लिये (जयहिंद ) जोगिन का कर भेप आज में जो तू करे भला वही प्रद्जी जो मन दे दिया बनवारीको ६8 [3 ধু १५ र ६० ९३ २०४ १६३७ र्‌ श्र १०२ १०० 85 খু ३० भेष ५६ १.८ ६६६. ष देष रष ७ २० १०४ ३२ ७० १४४ ५३




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