धर्म - प्रज्ञप्ति खंड - १ | Dharma Pragyati Khand-1
लेखक :
आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi,
मुनि दुलहराज - Muni Dulaharaaj,
श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya
मुनि दुलहराज - Muni Dulaharaaj,
श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
392
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi
No Information available about आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi
मुनि दुलहराज - Muni Dulaharaaj
No Information available about मुनि दुलहराज - Muni Dulaharaaj
श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya
No Information available about श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका
प्रस्तुत प्रन्य दशवेकालिक का वर्गीक्षत रूप है। दह्वंकालिक
का मूल सूत्रों में पहछा स्थान है। इसके दस अध्ययन है।
यह विकाल में रचा गया, इसलिए इसका नाम दक्षवेकालिक रखा
गया । इसके कर्त्ता श्रुतकेवली आचार्य शम्यंभव है। अपने पुत्र-
शिष्य सनक के लिए उन्होंने इसकी रचता की । वीर संवत् ७२ के
आस-पास “चम्पा' में इसकी रचना हुई । इसकी दो चूलिकाएँ है ।
दशवंकालिक अति प्रचलित और व्यवहृत आागम-प्रन्य है ।
अनेक व्याख्याकारों ते अपने समर्थत के लिए इसके सदर्भ-स्थलो को
उद्धृत किया है ।
यह एक तिर्यूहण कृति है, स्वतत्र नहीं। आचार्य হাসন
श्रुतकेवली थे । उन्होंने विभिन्न पूर्वों' से इसका निर्येहूण किया, यह
एक मान्यता है। दूसरी मान्यता के अनुसार इसका नियहण
गणिप्टिक द्वादशाड़री से किया गया ।
यह सूत्र ख्वेताम्वर और दिग्म्बर दोनो নকলা में मान्य रहा
है। खेताम्बर इसका समावेश उत्कालिक सूत्र में करते हुए इसे
वरण-करणानुयोग के विभाग में स्थापित करते हैं। इसके
User Reviews
No Reviews | Add Yours...