महात्मा गांधी की जीवन कथा | Mahatma Gandhi ki Jeevan Katha

Mahatma Gandhi ki Jeevan Katha by रामनाथ सुमन - Shree Ramnath 'suman'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सहात्सा गांधी जीवन-क्रथा श्र माता-पिता को धोखा दे रहा हूँ । धीरे-धीरे इस भाव ने जोर पकडा और इन्होंने निश्चय कर लिया-- माता-पिता से झूठ वोलना पाप है अत. जब तक वे जीवित है भास खाकर धोखा देना उचित नही । जब वे न रहेगे तब स्वतन्त्रता-पूर्वक खायेंगे । उस दिन से मास छूटा सो छूटा । पर उस सित्र ने यही तक नही आगे भी कदम बढाया । मासाहार से व्यभिचार की ओर गति हुई। एक वार दलदलू में गिरने पर धीरे- धीरे नीचे जाने लगा । एक दिन मोहनदास को भी वह एक चकले मे ले गया । बाई से सब बाते उसने पहले से ही तै कर ली थी और उसे पैसे भी दे दिये थें। पर अपने झेपू स्वभाव के कारण मोहनदास बच गये या यह कहे तो ज्यादा अच्छा होगा कि ईइवर ने इन्हे बचा लिया । यह जाकर मारे दार्म के गूँगे-से उस वाई की चारपाई पर वैठ गये । एक दाब्द मूँह से न निकला इससे वह वाई झत्लाई और उसने इन्हे वाहर कर दिया । उस समय तो इन्हें अपने इस अपमान और नामर्दी पर बडी ग्लानि हुई पर पीछे इन्हे विष्वास हो गया कि भगवान्‌ ने ही रक्षा की हू । इसी प्रकार चचा इत्यादि की देखा-देखी सिगरेट पीने कीं आदत १२-१३ वर्ष की अवस्था में पडी । सिगरेट के लिए पैसे न मिलते इसलिए चचा की पी हुई अधजली सिगरेटे चुरा-चुराकर पीते । पीछे नौकरो के पैसो मे काट-कपटकर चोरी करने ठगें । पर चोरी-चोरी यह काम करने मे बडी ग्लानि होती । यहाँ तक कि इसी ग्लानि में एक दिन आत्महत्या कर लेने का भाव मन में आया । धतूरे के बीज खोज लाये । मन्दिर के एकान्त स्थल में शाम को आत्महत्या करने चले पर एक-दो बीज खाते ही हिम्मत छूटगई | पर इससे एक अच्छा फल यह निकला कि सिगरेट के जूठ्न पीते एव तौकरो के पैसे सराकार यो सिरसा साय पति ला उयन पद दलदलू में फसते-




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