बुद्ध | Buddh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
66
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)व्यायाम, सम्यक-स्मुति और सम्यक-समाधि | भगवान ने इस अवसर पर दुख
ओर दुःख के निरोध का उपदेश दिया | उनका कहना था कि “मिक्ुओ, में दो
ही चीजें सिखाता हँ-- दुःख ओर दुःख से मुक्ति ।??
बुद्ध ने २६ वर्ष की आयु में ग्रह-त्याग किया था, छः वर्ष तक तरह तरह
की साधना में लगे रहे। ३५ वर्ष की आयु में ज्ञान ग्राप्त किया | २४ वर्ष की आयु
से ८० वर्ष की आयु तक पूरे ४५ वर्ष का शेष जीवन लोक-कल्याण में ही बीता |
अपने वचन और कम से संसार में किस्ती एक आदर्मी ने लोक में इतनी सदभाव-
नाओं का संचार नहीं किया जितना बुद्ध ने |
सुना है कि इटली का कोई पादरी जीसस क्राइस्ट के बारे में व्याख्यान दे
रहा था | मुसोलिनी उस समय विद्यार्थी था। उससे न रहा गया | वह अन्तिम
बेंचपर खडा हुआ और बोला--क्या कहते हो बार-बार जीसस क्राइस्ट के बारे
में, जितकी सिनिस्ट्री कुल तीन साल रही | हिन्दुस्तान में एक बुद्ध हो गया है
जो पैंतालीस वर्ष तक लोक-कल्याण का जीवन व्यतीत करता रहा |
बुद्ध ने सारनाथ, बनारस में जब अपना धर्म-चक्त चलाया तो बह पिं
परिव्राजके उनके भिन्ञु-सद्च के प्रथम सदस्य ह्ये गये । धीरे-धीरे काशी के अन्य
तरुण उत्त भिन्ु-मरडली को बढाने लगे | कित्र मी नये जीवन-सन्देश को सदा
से तरुण ही तो अपनाते आये हैं । एक बार पचास जने एक साथ ही बुद, धर्म,
स्च ऋ शरण गये जब उन सब की संख्या इकसठ हो गईं, तो भ्रगवान बुद्ध ने
उन्हें सम्बोधित कर कहा चरथ मिक्छवे चारिकं बहुजनहिताय, बहुजनसुखाय
लोकानुकम्पाय अत्थाय हिताय चुखाय देवमनुस्तानं | देसेथ भिक्खवे घस्म॑ आदि
कल्याण मज्ककल्याण परियोसानकल्याण सात्थ सव्यजनं केवलपरिपुरणं परिसुद्धं
ब्रह्म-चरिय पकासेथ |
[ मिच्चुओ ! सर्वेस्ाघारण के हित के लिये, लोगों को सुख पहुँचाने के
लिये, उन पर दया करने के लिये, तथा देवताओं और मनुष्यों का उपकार करने
के लिये घूमो | मिच्ुओ, आरम्भ, मध्य और अन्त सभी अवस्थाओं में कल्यार-
कारक धमं का, उसके शब्दों और भावों सहित उपदेश करके, सर्वाश में परिपूर्ण
परिशुद्ध बह्मचय्य॑ का प्रकाश करो |]
४
तेरह
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