बुद्ध | Buddh

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Buddh by आनंद कोशल्यायन - Anand Kaushalayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्यायाम, सम्यक-स्मुति और सम्यक-समाधि | भगवान ने इस अवसर पर दुख ओर दुःख के निरोध का उपदेश दिया | उनका कहना था कि “मिक्ुओ, में दो ही चीजें सिखाता हँ-- दुःख ओर दुःख से मुक्ति ।?? बुद्ध ने २६ वर्ष की आयु में ग्रह-त्याग किया था, छः वर्ष तक तरह तरह की साधना में लगे रहे। ३५ वर्ष की आयु में ज्ञान ग्राप्त किया | २४ वर्ष की आयु से ८० वर्ष की आयु तक पूरे ४५ वर्ष का शेष जीवन लोक-कल्याण में ही बीता | अपने वचन और कम से संसार में किस्ती एक आदर्मी ने लोक में इतनी सदभाव- नाओं का संचार नहीं किया जितना बुद्ध ने | सुना है कि इटली का कोई पादरी जीसस क्राइस्ट के बारे में व्याख्यान दे रहा था | मुसोलिनी उस समय विद्यार्थी था। उससे न रहा गया | वह अन्तिम बेंचपर खडा हुआ और बोला--क्या कहते हो बार-बार जीसस क्राइस्ट के बारे में, जितकी सिनिस्ट्री कुल तीन साल रही | हिन्दुस्तान में एक बुद्ध हो गया है जो पैंतालीस वर्ष तक लोक-कल्याण का जीवन व्यतीत करता रहा | बुद्ध ने सारनाथ, बनारस में जब अपना धर्म-चक्त चलाया तो बह पिं परिव्राजके उनके भिन्ञु-सद्च के प्रथम सदस्य ह्ये गये । धीरे-धीरे काशी के अन्य तरुण उत्त भिन्ु-मरडली को बढाने लगे | कित्र मी नये जीवन-सन्देश को सदा से तरुण ही तो अपनाते आये हैं । एक बार पचास जने एक साथ ही बुद, धर्म, स्च ऋ शरण गये जब उन सब की संख्या इकसठ हो गईं, तो भ्रगवान बुद्ध ने उन्हें सम्बोधित कर कहा चरथ मिक्छवे चारिकं बहुजनहिताय, बहुजनसुखाय लोकानुकम्पाय अत्थाय हिताय चुखाय देवमनुस्तानं | देसेथ भिक्‍खवे घस्म॑ आदि कल्याण मज्ककल्याण परियोसानकल्याण सात्थ सव्यजनं केवलपरिपुरणं परिसुद्धं ब्रह्म-चरिय पकासेथ | [ मिच्चुओ ! सर्वेस्ाघारण के हित के लिये, लोगों को सुख पहुँचाने के लिये, उन पर दया करने के लिये, तथा देवताओं और मनुष्यों का उपकार करने के लिये घूमो | मिच्ुओ, आरम्भ, मध्य और अन्त सभी अवस्थाओं में कल्यार- कारक धमं का, उसके शब्दों और भावों सहित उपदेश करके, सर्वाश में परिपूर्ण परिशुद्ध बह्मचय्य॑ का प्रकाश करो |] ४ तेरह




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