जीवन - दृष्टि | Jeevan- Dristi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : जीवन - दृष्टि  - Jeevan- Dristi

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

आचार्य विनोबा भावे - Acharya Vinoba Bhave

No Information available about आचार्य विनोबा भावे - Acharya Vinoba Bhave

Add Infomation AboutAcharya Vinoba Bhave

श्री बैजनाथ महोदय - Shri Baijnath Mahoday

No Information available about श्री बैजनाथ महोदय - Shri Baijnath Mahoday

Add Infomation AboutShri Baijnath Mahoday

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्र त जोचच-दृष्टि है| उस बच्चे के निमित्त उसका ब्रह्मचय-पालन आसान द्वोगा । माता बच्चे फे लिए रात-दिन कष्ट सइती है, फिर मी अनुभव करती दे कि उसने बच्चे के लिए कुछ भी नहीं किया। कारण, यच पर उसका जो प्रेम है, उसकी तुलना में स्वयं झेले हुए कष्ट उसे बहुत অহন মান दोते हैँ । इसी प्रकार ब्रह्मचारी का जीवन तप से, संयम से ओत-प्रोत रहता है। पर उसके सामने रदनेवाढो विशाल कल्पना के अनुपात में सारा संयम उसे अल्प ही जान पड़ता है। उसके बारे में 'इन्द्रिय-निम्रह मैं करता हूँ? ऐसा कर्तरि प्रयोग न रहकर 'इन्द्रिय-निम्रह किया जाता है! यह कर्मणि प्रयोग ह्वी शेप रहता दे । मान लीजिये, कोई व्यक्ति हिन्दुस्तान की दीन जनता की सेवा का ध्येय रखता है, तो यह सेवा उसका ब्रह्म है | उसके लिए वह जो करेगा, वह अह्मचय हे। संक्षेप में कहना हो तो नैप्िक ब्रह्मच्य पालनेवाले की आँसों के सामने फोई विशाल कल्पना होनी चाहिए, तभी वह आसान द्वोवा है। ब्रहमचयं को मैं विशाल ध्येयवाद और तदर्थ संयमाचरण कहता हूँ । यह ब्रह्मचर्य के संबंध में मैंने मुख्य बात बतछायी । दूसरी एक बात कहने को बच जाती हे, वढ यह कि जीवन फी छोटी-छोटी बातों में मी नियमन की आवश्यकता है ! पाना, पीना, बोलना, बैठना, सोना आदि सव विष्यो मे नियमन चादिए । मनचाही चाल चलें और इन्द्रिय-निम्रद साथें, यह आशा व्यथ है। घड़े में तनिकन्सा छेद हो, तो भी वह पानी रखने छायक नहीं रह जाता। उसी प्रकार चित्त की भी स्थिति है। ग्राम-सेवा इत्त ४-८




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now