सूत्रधार मंडन विरचित प्रासाद | Sutradhar Mandan Virchit Prasad
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६
इन सत्र मूर्तियों की रचना रूप मण्डन ग्रन्थ मे वशित भो के श्रनरमार ययार्यत हुई है । स्पष्ट है
कि सुत्रधार मण्डन शास्त्र और प्रयोग दोनों थे निपुण अ्रम्यासी थे। शिल्प शास्त्र मे वे जिन लक्षणों का
उल्नेव करते थे उन्ही के श्रनुमार स्वेय या अपने विष्यो द्वारा देवं भू्ियो कौ रचना भी कराते जाते धे ।
किमी समय श्रषने देण मे सूत्रधार मण्डन जेमे सहस्रो की चन्या में लब्ध कीर्ति स्थपत्ति और
वास्तु विद्याचार्य हुए | एतोरा के ঈলাহ मन्दिर, खजुराहो के कदरिया महादेव, भुवनेश्वर के सिद्धराज,
तजोर के बृहदीदवर्, कोणार्कं कै सूर्यदेड- प्रादि एक ग एक भन्य देव সালাহীঈ निर्माण का श्रेय जिन
शिल्पाचार्यों की कल्पना में स्फूरित हुआ और जिन््होने अपने कार्य फ्ौद्यल से उन्हे मूर्त रूप दिया वे सचमुच
धन्य थे शौर उन्होने ही भारतीय सस्कृति के मार्ग-दर्भन का शाश्वत कार्य किया ।
उन्ही की परम्परा में सुत्रभार मण्डन भी थे । देंव-प्रासाई एवं नृप मदिर आदि के निर्माण कर्ता
सुत्नवारों का कितना अधिक सम्मानित स्यान था यह मण्डन के निम्न लिसित इलोऊ से ज्ञात होता है--
“त्यनन्तरत कुर्यातु सुनधाररय पूजनम् ।
भूवित्तवरधानं ट्वारे-गॉमिहिप्यश्ववाहने 1।
प्रन्येया शिल्पिना पूजा कत्त व्या कर्मकारिणाम् ।
स्वाधिकारानुमारेण वस्मताम्द्रलमोजने ॥
काष्टपापाशनिमशि-कारिणो यत्र॒ मन्दिरे ।
भुञ्ञनेऽसो तथ सौस्य शद्धुःरतिददौ सहं ।
पण्य प्रासादज स्वामी प्राययेत्सूथवारत ।
सूत्रधारो वदेव स्वामित्तक्षय भवतात्तव ।। *
प्रासादमण्डन ८ ८२-८५
र्यात् निर्माण की समाप्ति क श्रनन्तर सुत्रधार का पूजन करना चाहिये और अ्रपनी दाक्ति के अनु-
सार भूमि, सुवर्ण, वस्त्र, भ्रलद्भार के द्वारा प्रधान सूत्रधार एवं उनके सहयोगी अ्रन्य शिल्पियो का सम्मान
करना श्रावश्यक है ।
जिस मन्दिर में शिला या काष्ठ द्वारा निर्माण कार्य करने वाले शिल्पी भोजन करते ই वही
भगवाद् शकर देषो के साय विराजते हैं | प्रासाद था देव मन्दिर के निर्माण मे जो पुण्य है उस पुण्य की
प्राप्ति के लिये सूतधार से प्रार्थना करनी चाहिए, 'हे सूनधार, तुम्हारी कृपा से प्रासाद निर्माण का पुण्य
मुझे प्राप्त हो ।” इसके उत्तर में सुत्रधार कहे--है स्वामिन् 1 सथ प्रकार आप की श्रक्षय वृद्धि हो ।
सूत्रधार के प्रति सम्मान प्रदर्शन की यह श्रथा लोक मे श्राजतक जीवित है, जव सूत्रधार शिल्पी
नतन गृह का द्वार रोककर स्वामी से कहता है “ग्राजतक यह ग्रह मेरा था, भ्रव भ्राज से यह तुम्हारा हु्ना ।
उसके अ्रनन्तर गृह स्वामी सूत्रधार को इष्ट-वस्तु देकर प्रसन्न करता है श्रौर किर ह मे भवेश करता है ।
सूत्रधार मण्डन का प्रासाद-मण्डन ग्रन्थ भारतीय शिल्प ग्रन्थों मे महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है 1
मण्डन ने आठ प्रध्यायो मे देव-प्रासादों के निर्माण का स्पष्ट और विस्तृत वर्णान किया है 1 पहले अध्याय
में विश्वकर्मा को सृष्टि का प्रथम सुत्रधार कहा गया है ! शहो के विन्यास और प्रवेश की जो धार्मिक विधि
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