साधना का मार्ग : सरलता | Sadhana Ka Marg : Sarlata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ अन्तर की मीर दूसरी तरह के पुरुष ऊपर से सीधे और सरल दिखाई देते हैं किन्तु अन्दर से कपटी और कुटिल होते हैं। “मुंह में राम बगल में छुरी 1” कहावत को चरितार्थ करते हैं। ऐसे व्यक्तियों से सदा मनुष्य को सावधान रहना चाहिये । तीसरे प्रकार के पुरुष जो अभी मैंने बताए हैं ऊपर से वक्त अर्थात्‌ ठेढ़े दिखाई देते हैं किन्तु अन्दर से अति सरल व हितचिन्तक होते हैं । प्राय: गुरुजन इस कोटि में आते हँ । उनकी वक्रता से मनुष्य को घवराने की आवक्य- केता नहीं है । उनकी ताडना व भत्सना को जीवननिर्माणि का साधन मान कर अपनाने की श्रावश्यकता है । सबसे निकृष्ट व्यक्ति चौथे प्रकार के होते हैं जो जीवन में किसी का शुभ नहीं करते। ऐसे व्यक्तियों के समीप स्वप्न में भी जाने की आकांक्षा नहीं करनी चाहिये | तुलसीदास जी नेतो यहाँ तक कहा है -- वर भल बास नरक कर ताता, दुष्ट संम जनि देहु विधाता । नरक में जाना भला पर विधाता कभी दुष्ट की संगति न कराए । इस पद्यसे भी ज्ञात होता है कि अन्दर तथा बाहर से वक्र व्यक्ति कितने त्याज्य होते हैं ! इसीलिये प्रत्येक मनुष्य को अत्यन्त सोच विचार कर तथा अच्छी तरह से परखकर हो किसी व्यक्ति से सम्पर्क स्थापित करना चाहिये । हृदय की सरलता मानव को आलोक प्रदान करती है तथा आत्मा को अत्यन्त शांति की अ्रवस्था में पहुंचा देती है । इसके विपरीत वक्रता कलुष है । वह मानव की थ्रात्मा को दूषित करती हुई जन्म-मरण के चक्र को श्रौर भी गति प्रदान करती है । प्रत्येक मनुष्य को सरलता का अवलम्बन लेते हुए अपने हृदय को शुद्ध तथा पवित्र बनाना चाहिये | भूल हो जाना बुरी बात नहीं है किन्तु उसे छिपाने का प्रयत्न करना बुरी वात है। अतः सरलतापूर्वक जीवन में होने वाली भूलों पर पश्चात्ताप करते हुए साधक को चौभंगी में बताए हुए सीधे मार्ग पर चलना चाहिये। सरलता ही जीवन को उन्नत बनाने का सबसे सीधा मार्ग है जो आत्मा को मोक्ष के द्वार पर पहुंचा सकता है। क




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