सुरती | Soorti Mishra Ka Agyat Kavya Granthawali-2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूरति मिश्र का अज्ञात काब्य नेकु दरपन समता की चाह करी क्ट भए अपराधी ऐसे चित्त धारियत है। सूरति सु याही ते जगत बीच आजु हु लों उनके बदन पर छार डारियत हैं। २ ॥॥ ३--अमरचन्द्रिका यह सतसई के दोहों की टीका है। इसे इन महाशय ने सं० १७६४ में बनाई। यह महाराजा अमरसिह जी जोधपुर के नाम से बनाई गई । इसके समान कोई भी टीका सतसई की भव तक नहीं बनी । इसमें बहुत से अर्थ कहे गये हैं और भ्रलकार लक्षणा, व्यंजना इत्यादि भी खूब साफ करके दिखलाई गई हैं। इस पर प्रसन्न होकर महाराज ने उनकी बड़ी खातिर की झौर कवि-कुलपति की पदवी दी । वास्तव में यह ग्रन्थ ऐसा ही प्रशंसनीय बना भी है। ४-कविप्रिया का तिलक इसे भी इन महाशय ने वनाया, परन्तु इसमें संवत इत्यादि नहीं दिए ` गए हैं । यह भी तिलक उत्कृष्ट बना है। इसमे कुल छंदों का तिलक किया गया है । परन्तु जो-जो स्थल कठिन और विवादपूर्ण हैं, उन पर शंका रहित टीका की गई है, जो सर्वंतोभावेन प्रशंसनीय है। इससे केशवदास का क्लिष्ठकाव्य पाठक सहज में अच्छी तरह समझ सकते हैं | आगे मिश्रब॑न्धुओं ने लिखा है कि--- /इन ग्रन्थों के अ्रतिरिक्त इन्होंने बैतालपंचविशति का संस्कृत से गद्य ब्रजभाषा में अनुवाद किया । यह उल्था महाराज जैसिह सवाई की आज्ञा से किया गया था । खोज रि० त्रै० में उनके ब्रनाए इए काव्य-सिद्धान्त, रस-रत्नाकर-माला झ्ौर रसिकप्रिया की टीका रस-गाहकचन्द्रिका नामक ग्रन्थ लिखे हैं । उदाहरण-- “कमल नयन कमल से हे नेन जिनके कमलद वरन कमलद कहिए । भेघ को वरण है श्याम स्वरूप है, कमल नाभि श्री कृष्ण को नाम ही है, कमल जिनकी नाभि ते उपज्यौ है । कमलाय कमला लक्ष्मी ताके पति हैं, तिनके चरण कमल समेत ग्रुन को जाप क्‍यों मेरे मन में रहो 1” है ग्रन्थों की चर्चा करने के पश्चात सिश्रवन्धुओं ने निम्तांकित निष्कर्ष दया है : --




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