सत्यागुणव्रत | Satyagunavrat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
308
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जवाहर किरणावली |] _ রর [ ११
तना दो जाता दहै, तो क्रर-प्राशियों की ऋरता दूर होने में संदेह ही
क्या है ? इंसकें विपरीत, अर्थात् अपने दुगु णों को दूर किये विना,
क्ैवल दूसरों को दबाने लिए जो सत्याग्रह किया जाता है, वह सत्या-
प्रह दराग्रह हो जांता है और स्वय॑ करने वाले का दी नाश कर देता
है. एसे भी अनेक उदाहरण विद्यमान है
ष
भगवान महावीर ने सत्याग्रह का प्रयोग पहले अपने ही ऊपर
कर लिया-था-। इससे वे, चण्डको शिक एसे. विषधर सष के स्थान पर
लोगो के मना करते . हए भी, निभयता-पू्कं चले गये । उस चण्ड-
कौशिक ने--जिसकी टष्टि मात्र से दी जीवों कौ गल्यु का प्रालिगन
करना पडता था--भगवान् महावीर को अपने भयंकर विपेले दांतों
से काटा भी, लेकिन सत्य के प्रताप से वह विष भगवान् की किंचित
माच्र भी दानि न कर सका । उल्टे चण्डकोशिक की तामसी प्रकृति
भगवान् महावीर का सात्विकी-प्रकृति से टकरा कर शांति हो गई
ओर भगवान से बोध पाकर वह कल्याण-सार्ग का पथिक बना |
जिसने सत्य के द्वारा अपनी आत्मा को बलवान बना लिया
है, वह .मृत्यु से भी भय नहीं करता । प्राणों के. असीम संकट में पड़ने
पर भी, ऐसा आत्मबली धेयं से जरा भी `वि चलित नदीं ` होता ओर
प्रसन्नतापू्वंक अपने प्राणों का त्याग करता है ।
-; गजसुकमाल मुनि; श्मशान मे बारहवीं भिज्ञ .पडिमा.धारण किये
हुए थे। इतने: में सोमल ब्राह्मण-आया । उसने-क्रोधित हो, गजसुकमाल
मुनि के सिर-पर चारों ओर.-.मिट्टी को पालः बना: उसमे; जलते हए
लाल २“खेर:के:अंगारे सर दिये ।- लेकिन गजसुकमाल मुनिं का ध्यान
भग.न हुआ 5 {+
इस 'भीषण-विपत्ति से भी, गजसुकमाल: सुनि-का हृदय ভুল
नहीं हुआ; न ब्राह्मण के प्रति उसके हृदय में क्राध ही उत्पन्न हुआं:।
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