धन्वन्तरि शास्त्रीय सिद्ध प्रयोगांक भाग - 2 | Dhanvantri Shastriya Siddh Prayogank Part - 2
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda, स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38.63 MB
कुल पष्ठ :
444
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साय सत्र रस मन स्कस्करर नल बन! लिन सना
सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक . 'पसूल
बे कद, सक््द डिक झनुााएणएथ-ु-गएपइ-सस्या” सर जून . मन ' ्
। नाम कंपसुल । +. गुण संक्षेप में (रोग निदश:) ' ० कप. | १०० कंप-
६ । रुदन्ती कैपसूल नं- १ कफ, खांसी, जीर्ण उ वर, तर्पदिक आदि के 1 ए सुर््रेनिद्ध
(स्वर्ण बसष्तमालती युक्त)
१ | रुदन्ती कप. (लघुभालली युक्त) कि 3 १३.४० | २६.१०
३ | ज्वराग्क केपसुल बात, कफ एवं थी ज्वर, मलेरिया, इ'फ्टुए जा, सी | ई२.१० | २६.००
इलेष्मिक ज्वर नाक
४ | दिवत्पह्वारी जि कब्ज के लिये सत्य तम 1 ११४० | २२.००
४ | रक्तचोघन ... ,, फोड़ा फुम्सी, खुजली, 'चकत्ता, व अध्य बयं विकारों नें । | १३.५० २६.००
६ | वातरोगकर. , गठिया, हाथ पैरों स्ही सुख्बन, कमर का वें, गुप्नी व दि | रु इ० | ध०.००
वाष रोगों में अतीत चामकारी । पहुर कोष्ठ धु द्ध कर. लें
७ | ल्यूकोना का धवेत प्दर, रक्त ![दर, मासिक घम्में अधिक दि । रहते । | १८.२५ ३४ ४०
पथ. | मदने शक्ति कि स्वम्पन धविठ बाज हुए सम्मोगजध्य निर्वत्ता को दुर | १८.२४ ३४ श्ू०
फरता है । वल, रोयें, कालि लौीर काकिए बढ़ावा हैं । हि
६ | दवासह्दारी ही नया या पुराना ९ वास-दमा, ऊुकुर ख संग, जुकाम आदि । हु.००1 ७ ००
१० | 'मर्दाश्तिक ..... ,, घादी था खुनी दोनों प्रकार के अशे पर अत्युपयोगी व €.०० | १७.००
११ | रजावरोघार्तक ,,. . कष्ट रजता तथ: रजः प्रवर्तन को परेक्षा ती दूर करता, €.००| १७ ००
मासिक घममें साफ लावा है 1
१५ | गोनारि व देवाब में जलन, पेशाब लगकर माना, मत्राद जाता मद | १४.०० २७.००
१४ | मेघा दावित मस्तिष्क की हु ंलष्ा दूर कर समर ग !त, के बढ़ाता है 1 १३.५० २६.००
१४ | वील्सी न कल्दियम की पःमी, ज्वर के पर्चा की कमजारा, उरी द.००| र.००
१४ | कैल्सी लोह कल्शियम तथा लोह की कमी दूर करते ?, रक्तवद्धक 1 | € ५०| १८.८०
१६ | त्रिदाक्ति कि लोह युक्त कंपसुव हैं जो उम्र “ीम्परी के पदचात रही | ११४० २९.८०
गए कमजोरी दूर कफ मुख दढ़ाते, रात की कमी दूर क (ते हैं ।
१७ | रक्तचापहारी अनिद्रा, यरेचनेा, उत्माद, पस्थिप्क पी उ जितना, रकवाप | ११-५० १३९४.:०
थ .दको दूर करे में अनुपम 1
१ | शूलारि शा धरीर में कहीं सम तथा कसा भी ददे हो ,रस्त दूर होगा | १० ०९ | १६००
१६' | पाण्डनोल कि रताल्पष्ठ! एवं पांडु रोग नाश अचूक क)प्रघि है । १९.०० २३०२३
२० | छोषाण्तक ही द. दकों पे सुखा *ोग फे लिये अन्य नोपति है « १२०० २३८०
१ | हुद्वोगारि कि दि की घड़त३ ८ ढुत्ा, दिल फा चैठच!, छंद ये ही दुबे नहा
तथा. मी प्रकतर फे द्दरोगों में तुरष्ठ लाभड दे कपसुरू हैं | १४०० ७.००
२९ | क्लीवारि कि नपु सता, शी भ्यप इन, पतला अत, स्वप्तदोप, रतम्मनधक्ठि | र० ०० | बेट.००
ः | की घी द्रर कर अल. वी, कांति ध्ष्य अर बढ़ाते है 1
२६ | मवठिसाराष्तक ,; 1 ब्ाउ, झोभदर, पे मक दथा जामपा बक हैं । दालाठिसार | ११.४० | पपू.००
अपचन जनित, ९. 2 जनिछ सटिवार में लापकररी हैं 1
प४ | क़मिघातछिनी.. ,, पेट के हर घरकार फ कीड़ों एर छोर प्रमावतानी, इमि | १९.०० | २३००
जव्य व्याधियों कवि एलटे उत्तम, पवकाई, इमिए पाप दाय-
. शूद; नजला जुकाम , बर्दरिवनादाक 1 ९
१४ | गेसोना की भोजन के चाद गैस पनती है तो इनको अवद । यवह्ार | १२.०० | झ३े.००
करें । पेट का मार्र पन, उदरदुल, शुघामांद्य पें ल.मकारी
२६ | ट्स्टीरियाइर स्त्रियों को होवे ८1 ने दी तें के लिए लामकारी १३ प्रु० | रु ००
२७.1 रवप्नघमेद्टाराठंक ,; स्वप्त प्रमेह नाहक सुपरक्षित कंपसुल 1 २५५० फशुल्,0०0
२८ | मलेरियाहर पारी थे गादे वाखे ज्वर कि लिए उत्तम । १४.००) २६००
२६ | संघुना गि मघुमेह नाशक सुपरीक्षित । ०,०0८ | रथ भु०
३० | पूसचनों हि धर्मविस्था में पगातार ४७ दिन सेने दे रिःचथ ट्वी पुन ॥ श्सट | २६ ०
विस्तृत विवरण के लिए पत्र डा-[का.-सुचीपतर मंगा रा ।
निर्माता-घछो ज्वाला आयुर्वद एव व, मास पांजा रोर', अलीगढ़ ।
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