धन्वन्तरि शास्त्रीय सिद्ध प्रयोगांक भाग 3 | Dhanvantri Shastriya Siddh Prayogank Bhag-ii

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Dhanvantri Shastriya Siddh Prayogank Bhag-ii by दाऊदयाल गर्ग - Daudayal Garg

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साय सत्र रस मन स्कस्करर नल बन! लिन सना सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक . 'पसूल बे कद, सक््द डिक झनुााएणएथ-ु-गएपइ-सस्या” सर जून . मन ' ् । नाम कंपसुल । +. गुण संक्षेप में (रोग निदश:) ' ० कप. | १०० कंप- ६ । रुदन्ती कैपसूल नं- १ कफ, खांसी, जीर्ण उ वर, तर्पदिक आदि के 1 ए सुर््रेनिद्ध (स्वर्ण बसष्तमालती युक्त) १ | रुदन्ती कप. (लघुभालली युक्त) कि 3 १३.४० | २६.१० ३ | ज्वराग्क केपसुल बात, कफ एवं थी ज्वर, मलेरिया, इ'फ्टुए जा, सी | ई२.१० | २६.०० इलेष्मिक ज्वर नाक ४ | दिवत्पह्वारी जि कब्ज के लिये सत्य तम 1 ११४० | २२.०० ४ | रक्तचोघन ... ,, फोड़ा फुम्सी, खुजली, 'चकत्ता, व अध्य बयं विकारों नें । | १३.५० २६.०० ६ | वातरोगकर. , गठिया, हाथ पैरों स्‍ही सुख्बन, कमर का वें, गुप्नी व दि | रु इ० | ध०.०० वाष रोगों में अतीत चामकारी । पहुर कोष्ठ धु द्ध कर. लें ७ | ल्यूकोना का धवेत प्दर, रक्त ![दर, मासिक घम्में अधिक दि । रहते । | १८.२५ ३४ ४० पथ. | मदने शक्ति कि स्वम्पन धविठ बाज हुए सम्मोगजध्य निर्वत्ता को दुर | १८.२४ ३४ श्ू० फरता है । वल, रोयें, कालि लौीर काकिए बढ़ावा हैं । हि ६ | दवासह्दारी ही नया या पुराना ९ वास-दमा, ऊुकुर ख संग, जुकाम आदि । हु.००1 ७ ०० १० | 'मर्दाश्तिक ..... ,, घादी था खुनी दोनों प्रकार के अशे पर अत्युपयोगी व €.०० | १७.०० ११ | रजावरोघार्तक ,,. . कष्ट रजता तथ: रजः प्रवर्तन को परेक्षा ती दूर करता, €.००| १७ ०० मासिक घममें साफ लावा है 1 १५ | गोनारि व देवाब में जलन, पेशाब लगकर माना, मत्राद जाता मद | १४.०० २७.०० १४ | मेघा दावित मस्तिष्क की हु ंलष्ा दूर कर समर ग !त, के बढ़ाता है 1 १३.५० २६.०० १४ | वील्सी न कल्दियम की पःमी, ज्वर के पर्चा की कमजारा, उरी द.००| र.०० १४ | कैल्सी लोह कल्शियम तथा लोह की कमी दूर करते ?, रक्तवद्धक 1 | € ५०| १८.८० १६ | त्रिदाक्ति कि लोह युक्त कंपसुव हैं जो उम्र “ीम्परी के पदचात रही | ११४० २९.८० गए कमजोरी दूर कफ मुख दढ़ाते, रात की कमी दूर क (ते हैं । १७ | रक्तचापहारी अनिद्रा, यरेचनेा, उत्माद, पस्थिप्क पी उ जितना, रकवाप | ११-५० १३९४.:० थ .दको दूर करे में अनुपम 1 १ | शूलारि शा धरीर में कहीं सम तथा कसा भी ददे हो ,रस्त दूर होगा | १० ०९ | १६०० १६' | पाण्डनोल कि रताल्पष्ठ! एवं पांडु रोग नाश अचूक क)प्रघि है । १९.०० २३०२३ २० | छोषाण्तक ही द. दकों पे सुखा *ोग फे लिये अन्य नोपति है « १२०० २३८० १ | हुद्वोगारि कि दि की घड़त३ ८ ढुत्ा, दिल फा चैठच!, छंद ये ही दुबे नहा तथा. मी प्रकतर फे द्दरोगों में तुरष्ठ लाभड दे कपसुरू हैं | १४०० ७.०० २९ | क्लीवारि कि नपु सता, शी भ्यप इन, पतला अत, स्वप्तदोप, रतम्मनधक्ठि | र० ०० | बेट.०० ः | की घी द्रर कर अल. वी, कांति ध्ष्य अर बढ़ाते है 1 २६ | मवठिसाराष्तक ,; 1 ब्ाउ, झोभदर, पे मक दथा जामपा बक हैं । दालाठिसार | ११.४० | पपू.०० अपचन जनित, ९. 2 जनिछ सटिवार में लापकररी हैं 1 प४ | क़मिघातछिनी.. ,, पेट के हर घरकार फ कीड़ों एर छोर प्रमावतानी, इमि | १९.०० | २३०० जव्य व्याधियों कवि एलटे उत्तम, पवकाई, इमिए पाप दाय- . शूद; नजला जुकाम , बर्दरिवनादाक 1 ९ १४ | गेसोना की भोजन के चाद गैस पनती है तो इनको अवद । यवह्ार | १२.०० | झ३े.०० करें । पेट का मार्र पन, उदरदुल, शुघामांद्य पें ल.मकारी २६ | ट्स्टीरियाइर स्त्रियों को होवे ८1 ने दी तें के लिए लामकारी १३ प्रु० | रु ०० २७.1 रवप्नघमेद्टाराठंक ,; स्वप्त प्रमेह नाहक सुपरक्षित कंपसुल 1 २५५० फशुल्,0०0 २८ | मलेरियाहर पारी थे गादे वाखे ज्वर कि लिए उत्तम । १४.००) २६०० २६ | संघुना गि मघुमेह नाशक सुपरीक्षित । ०,०0८ | रथ भु० ३० | पूसचनों हि धर्मविस्था में पगातार ४७ दिन सेने दे रिःचथ ट्वी पुन ॥ श्सट | २६ ० विस्तृत विवरण के लिए पत्र डा-[का.-सुचीपतर मंगा रा । निर्माता-घछो ज्वाला आयुर्वद एव व, मास पांजा रोर', अलीगढ़ ।




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