सूयगडो | Suygado

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[२० ] निर्युक्तिकार के अमुसार अध्ययनों के प्रतिपाद्य इस प्रकार हैं-- 1 @ এটি न्ट ০৫ প্র 20 পা 72 १०. ११. १२८ १३. १४. १५. १६ , स्वसमय-परसमय का निरूपण . सम्योधि का उपदेश उपभो [प्राप्त कष्टो ] की तितिक्षा का उपदेश . स्वीदोष का व्जन~-ब्रह्मचयं साधनः का उपदेश - उपसरंधीर और स्त्रीवशवर्ती मुनि का नरक में उपपात भगवान्‌ महावीर ने जैसे उपसर्ग और परीसह पर विजय प्राप्त की, वैसी ही उन पर विजय पाने का उफ्देश * कुशील का परित्याग और शौल का समाचरण . वीये का बोध और पंद्वितवीय मे प्रयत्न . यथार्थ धर्म का निर्देश समाधि का प्रतिपादन मोक्षमार्ग का निर्देश चार बादि-समवसरणो--दार्शनिको के अभिमत का प्रतिपादन यथायं का प्रतिपादन गुरुकुलवास का महत्व आदातीय--चारित्र का प्रतिपादन - पूर्वोक्त विषय का संक्षेप मे संकनन--निप्रन्य आदि की परिभाषा द्वितीय श्र्‌ तस्कन्ध के अध्ययनों का विषय-निरूपण इस प्रकार है-- @ ~ ^< व ~< ~<) = अग साहिश्य मे माचार-निरूपण विभिन्न सन्दभो मे किया गया में किया गया है सूत्रकृत दूसरा अग है। इसमे वह दार्शनिक मीमासा - पुंडरीक के दृष्टान्त द्वारा घ॒र्में का निरूपण - क्रियाओ का प्रतिपादन' . आहार का निरूपण प्रत्याख्यानक्रिया का निरूपण ` भाचार भौर मनाचार का बनेकान्तदृष्टि से निरूपण : आद्रेकुमार का गोशालक आदि श्रमण-ब्राह्मणों से चर्चा-सवाद * गौतम स्वामी ओर पार्श्वापत्थीय उदक पेढालपुत्र का चर्चा-संवाद है। आचाराग प्रथम अंग है। उसमे बह अध्यात्म के सन्दर्भ जम के सन्दर्भ मे किया गया है। इसमे संदर्भ का परिवतेन हुआ है, १. सृत्रकृतांगनियुक्ति, गाथ। २२-२६ : ससमयपरसमयपरूषणा य भाऊण बुज्कणा चेव । २. सृत्रकृतागनिर्यक्ति, गाथा १६४ : किरियाओ भणियाओ किरियाठाणं ३. सृजकृतांगनिर्युक्ति, गाथा १६० संबढस्सुबसग्या धीदोसविदश्जणा चेव ।। उवसगग भीषणो योबसस्स णरएसु होढ उववाभो । एव महप्पा बीरो जयमाह तहा जएश्जाह ॥ णिस्सोल-कुसोलजढ़ों पुसोलसेवी य सीलवं चेव । जाऊुण वीरियदयुगं पंडिपवीरिए पयतिहष्वं ।। घम्मो समाहि मगो समोसहा चउदु सष्ववाबोसु । सीसगुणदोसकहणा घंथंसि सदा गुरनिवासो ॥ आयाणिय संकलिया भायाजिण्जम्मि भायतचरिलं । अप्यग्गंये पिडिक्बयणे गाधाए अहिगारों ॥ লি লগা अज्फपणं । अहिंगारो पुण भ्णिओ बंधे तह सोक्छमन्गे य)) ` मग्जदृएण गोसासभिक्खुबंधवतोतिदंडीण । शह हत्वितावसाणं कहिं इमो हहा बर्छ




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