सूयगडो | Suygado
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
659
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[२० ]
निर्युक्तिकार के अमुसार अध्ययनों के प्रतिपाद्य इस प्रकार हैं--
1 @ এটি न्ट ০৫ প্র 20 পা
72
१०.
११.
१२८
१३.
१४.
१५.
१६
, स्वसमय-परसमय का निरूपण
. सम्योधि का उपदेश
उपभो [प्राप्त कष्टो ] की तितिक्षा का उपदेश
. स्वीदोष का व्जन~-ब्रह्मचयं साधनः का उपदेश
- उपसरंधीर और स्त्रीवशवर्ती मुनि का नरक में उपपात
भगवान् महावीर ने जैसे उपसर्ग और परीसह पर विजय प्राप्त की, वैसी ही उन पर विजय पाने का उफ्देश
* कुशील का परित्याग और शौल का समाचरण
. वीये का बोध और पंद्वितवीय मे प्रयत्न
. यथार्थ धर्म का निर्देश
समाधि का प्रतिपादन
मोक्षमार्ग का निर्देश
चार बादि-समवसरणो--दार्शनिको के अभिमत का प्रतिपादन
यथायं का प्रतिपादन
गुरुकुलवास का महत्व
आदातीय--चारित्र का प्रतिपादन
- पूर्वोक्त विषय का संक्षेप मे संकनन--निप्रन्य आदि की परिभाषा
द्वितीय श्र् तस्कन्ध के अध्ययनों का विषय-निरूपण इस प्रकार है--
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अग साहिश्य मे माचार-निरूपण विभिन्न सन्दभो मे किया गया
में किया गया है सूत्रकृत दूसरा अग है। इसमे वह दार्शनिक मीमासा
- पुंडरीक के दृष्टान्त द्वारा घ॒र्में का निरूपण
- क्रियाओ का प्रतिपादन'
. आहार का निरूपण
प्रत्याख्यानक्रिया का निरूपण
` भाचार भौर मनाचार का बनेकान्तदृष्टि से निरूपण
: आद्रेकुमार का गोशालक आदि श्रमण-ब्राह्मणों से चर्चा-सवाद
* गौतम स्वामी ओर पार्श्वापत्थीय उदक पेढालपुत्र का चर्चा-संवाद
है। आचाराग प्रथम अंग है। उसमे बह अध्यात्म के सन्दर्भ
जम के सन्दर्भ मे किया गया है। इसमे संदर्भ का परिवतेन हुआ है,
१. सृत्रकृतांगनियुक्ति, गाथ। २२-२६ : ससमयपरसमयपरूषणा य भाऊण बुज्कणा चेव ।
२. सृत्रकृतागनिर्यक्ति, गाथा १६४ : किरियाओ भणियाओ किरियाठाणं
३. सृजकृतांगनिर्युक्ति, गाथा १६०
संबढस्सुबसग्या धीदोसविदश्जणा चेव ।।
उवसगग भीषणो योबसस्स णरएसु होढ उववाभो ।
एव महप्पा बीरो जयमाह तहा जएश्जाह ॥
णिस्सोल-कुसोलजढ़ों पुसोलसेवी य सीलवं चेव ।
जाऊुण वीरियदयुगं पंडिपवीरिए पयतिहष्वं ।।
घम्मो समाहि मगो समोसहा चउदु सष्ववाबोसु ।
सीसगुणदोसकहणा घंथंसि सदा गुरनिवासो ॥
आयाणिय संकलिया भायाजिण्जम्मि भायतचरिलं ।
अप्यग्गंये पिडिक्बयणे गाधाए अहिगारों ॥
লি লগা अज्फपणं ।
अहिंगारो पुण भ्णिओ बंधे तह सोक्छमन्गे य))
` मग्जदृएण गोसासभिक्खुबंधवतोतिदंडीण ।
शह हत्वितावसाणं कहिं इमो हहा बर्छ
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