शरत्-साहित्य (पन्द्रहवाँ भाग) | Sharat Sahitya (Pandrahva Bhaag)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४ शरत-साहित्य
बातचीत करें और कहँ---““ भाई, हम लोग पूजा तो करते हैं, लेकिन यह तो
` बताओ फ किस तरह करते हैं १” तब ऐसी बहुत-सी बातोंके निकल पढ़नेकी
सम्भावना रहती है जिन्हें बाहरके लोगौको सुनानेसे किसी तरह काम नही चल
पकता ! इसलिए, हम छोगोंकी यह आलोचना एकान्तमें ही ठीक है।
यह बात सभी देशोंके पुरुष समझते हैं कि सतीत्वसे बढ़कर नारीके लिए. और
कोई गुण नदीं हो सकता । क्योंकि पुरुषोंके लिए यही सबसे आधिक उपादेय
सामग्री है। और अपने स्वामीकी आशाके बाहर होकर,---फिर चाहे स्वामी
कितना ही बड़ा पाखंडी क्यो न हो,--मन ही मन उसे तुच्छ समझने और
उसकी अवंहेल्य करनेसे बढ़कर उनके लिए और कोई दोष नहीं है । इनमेंसे हर
एक बात दूसरी बातकी पूरक और आवश्यक अंग या निकलनेवाला निष्कर्ष
( = (गणाभ्> ) है } रामायण, महाभारत ओर पुराणौ आदिम इस बातकी
बार वार आलाचना की गई ই কি यह सतीत्व नारका कितना बडा धर्म है)
दस देशमे इस विष्रयपर इतना अधिक का जा चुका है कि अव इस सम्बन्धमें
ओर कुछ कइनेके लिए, बाकी ही नहीं रह गया दै । यहो तो स्वये भगवान् तक
इस सर्तीत्वकी चपेटर्मे आकर अनेक बार अस्थिर हो चुके हैं ।
लेकिन ये सोर तक॑ एक-तरफा ही हैं । केवल नारीके लिए ही हैं ।
हूँढनेपर भी इस बातका कहीं कोई पता नहीं चलता कि पुरुषोंके सम्बन्ध भी
यहाँ कोई विशेष बाध्य-बाघकता थी; ओर अगर हम साफ तौरसे यह बात कँ .
कि इतने बड़े प्राचीन देशमें इस विषयमें पुरुषोंके सम्बन्ध कहीं एक शब्द तक
नहीं है. तो शायद हाथा-पाईकी नौबत आ जायगी । नहीं तो यह बात हम साफ
तौर पर कह भी डालते । अँगरेज भी कहते हैं कि “ (४5४४४ ” (< आचरणकी
पवित्रता ) होनी चोहिए; पर वे इसके द्वारा पुरुष ओर स्त्री दोनोंका ही निर्देश
करतत है ओर हमरे देशम जिस शब्दका अर्थ सतीत्व होता है, वह केवल
नौरियोंके लिए, ही है। यह ठैक है कि शा्त्रकार छोग वनों और जेगलेमें निवास
करते थः लेकिन फिर भी वे लोग समाजकी पहचानते ये और इसीलिए, वे लोग
एक शब्द बनाकर भी अपने जाति-भाइयें। अर्थात् पुरुषोंकी ॥100०7ए०ा।ंला०७ में
( >सेकटमें या कठिन परिस्थितिमें ) नहीं डाल गये । वे इस बातके लिए काफी
जगह रख गये हैं कि नारीके सम्बन्ध युरुषकी प्रद्धत्ति जितना चांहे उतना
खुलकर खेर संक । वे कह गये ह कि पैशाच विवाह भी विवाह है ! पुरुषोंके साथ
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