पंद्रह अगस्त के बाद | Pandrah Agust Ke Baad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पद्रह श्रगस्तके वाद काग्रेस भ्‌ वटवारेसे अखिल भारतीय सस्थाका बटवारा नही होता-- होना भी नही चाहिए । हिदुस्तानकं दो सावभौम राज्योमे बट जानेसे उसके दो राष्ट्र नही हो जाते । मान लीजिए कि एक या ज्यादा रियासते दोनों राज्योसे वाहर रहती है, तो क्या काग्रेस उन्हें और उनके लोगोको राष्ट्रीय काग्रेससे बाहर कर देगी ? क्या वें काग्रेससे यह्‌ माग नही करेगे कि वह उनकी तरफ विशेष ध्यान दे और उनकी विशेष परवा करे ? यह जरूर हैँ कि अब पहलेसे ज्यादा पेचीदा सवाल खड़े होगे । उनमेसे कुछको हल करना मुश्विल भी हो सकता हैँ, लेकिन काग्रेसके दो टुकड़े करनेका यह कोई कारण नहीं होगा । इसके लिए काग्रेसको अब तककी अपेक्षा ज्यादा बडी राजनीति, ज्यादा गहरे विचार और ज्यादा ठडे दिमागसे फैसला करनेको जरूरत होगी । हमे पहलेसे ही लाचार बना देनेवाली मुश्किकोका विचार नही करना चाहिए । आजतक जो वुराघ्र्यादहौ चुकी वे काफी है । सवाल--क्या काग्रेस श्रव साप्रदायिक सस्या वन जायगी ? श्राज इसके लिए बार-बार माग की जा रही हूं। श्रव जब कि मुसलमान अ्रपने श्रापको परदेशी समभते है तब हम भी शअ्रपने यूनियनकों हिंदू हिंदुस्तान कहुकर क्यो न पुकारें और उसपर हिंदु-धर्मकी श्रमिट छाप क्यो न लया ? जवाब--यह सवाल पूछनेवालेफे घोर अनज्ञानकों जाहिर करता है । काग्रेस कभी हिंद-सरथा नहीं वन सकती | जो उसे हिंदू-सस्था वनाएगे वे हिंदुस्तान ओर हिदु-धर्मके दुग्मन होगे । हिंदुस्तान करोडो लोगोका राष्ट्र ह । उनकी यानज किसीने ही सुनी हे । जमर कोड दो न्टवे सिदटातको मानकर्‌




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