हिन्दी का गद्य - साहित्य | Hindi Ka Gadya Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्य मानव-वेतना की अभिव्यक्ति है। चेतना अनुभूति की संघनता तथा चिस्तन की सूदमंता के समन्वित आधार पर स्वरूप प्रहण करती है। अनुभूति का सम्बन्ध हदय की सम्वेदनशीलता से हैं और चिन्तन बस्तु- साहिय में गया. तत्व की स्थितिअववारणा के लिये उठनेवाली शंकाओं जिशा- झौर साओं तथा प्रश्नों के बौद्धिक समाधान का दूसरा नाम है । पद्च को स्यिति के विकास-क्रप में हूदय के सम्वेदनशील तत्वों की किपाशीलता पढले देती जाती है। प्रकृति की भयंकरता देखकर आदिमानव के हुदय मँ भय का संचार हुआ हीगा। प्राकृतिक उपकरणों की परिवलित रमगीयद नें मनव-हृदय में रागार्मक वुत्तियों को उद्भूत किया होगा भर प्रकृति को पोरकता के सतत अनुभव के उपरान्त ही मानव-मत में उसके पूस्य-दुत्ति जाती होगी । के दितीय चरण में सानव मे चिन्तन का आवार जिंदा होगा। उसने व्यक्द जगत्‌ के जटिल रहस्यमद रूपों का चौडिक समापान किया होगा। तकों को ने दिदारों को क्रम दिया होगा। नीदियों और सूव्तियों ने इग्हें सीमाओं में दॉपा होगा और चिन्तन अपनी सूधमताओं में साकार डुजआ होगा । अनुभूति और चिन्तन चेठना की ये दोनों सीमायें सत्तामतत भेद के कारण लनिव्पक्तिगत शली-भेद भी स्थापित कर लेती हैं? की सम्वेदवशील चृत्तियाँ विशिष्ट स्वर रूय गवि प्रवाह ता के पर मूें होकर पद- रचना मं सौप्टद ला देती हू। हू वे कौमउता




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