भारतीय - महिला bharatiy | Bhartiya - Mahila
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.19 MB
कुल पष्ठ :
197
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. भगवद्दत्त - Pt. Bhagavadatta
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सीता थ््ृ वज्पात के समान यहद दारुण संवाद कितना चकित और न्यधित कर देगा यह सोचते ही रामचन्द्र विचलित हो रहे थे. उनके मुख पर स्वेद् की चूँदे चमक रही थी । उनके स्वेद्युक्त और उत्तर हुए वदन को देखकर सीता ने चिंतितस्व॒र से पूछा- नाथ कोई नई दुघटना तो नहीं हुई स्वभाव-सौस्य आपका वह प्रशान्त भाव कहों गया । अब रामचन्द्र जी ने उत्तर दिया-- प्रिये बचनवद्ध सत्यसंध पिताजी आज मुमें वन को भेज रहे हे इसलिए वन जाने से पहले ठुमसे बिदा मॉगने आया हूँ । छुम नित्य प्रात काल देव- ताओ की पूजा करना पूजय पिताजी की वंदना करके मेरी दुःखित साता को भी समभाया करना । मेरे लिए चिन्ता न करना । चोदह चरस के चाद मैं लौट हो जाऊंगा । अच्छा. तो अब में जाता हूँ । सीता जी ने बड़ी धघीरता के साथ रामचन्द्र जी के चचन सुने लक्ष्मण की भॉति उन्होने बृद्ध ससुर के लिए कुछ अपशब्द सकह। अन्य स्त्रियो के भों ति माता केकयी के प्रति कछ दुर्भाव भी प्रस्ट नहीं क्यि. अपितु पति से केवल यही कहा--नाथ वीरों और क्षत्रियो को न फदन वाल अयडास्कर घाव्दों का आप उच्चारण क्यों पर रह है ? महाराल माता-पिता वन्धु और पुत्र आदि सभी सपने अपने भाग्य पे अघधियारी हैं पौर अपने भाग्य के अनुसार फ्ल भागने है पर भाया तो पति के ही भाग्य का भोगने बाली होती हे इसलिए साप पे वनदास में में भा सटवारिणी हूं और न्यपस को वचन नान दे याग्य सससती हैं. स्य्रियो का तो पति ही मुन्य आदर हाथ रन पिह साता पुत्र सा जोर स्वय उनकी आ सा व भा +वार सहीं हाता सतत यदि लाप जाल वन को लाने हैं तो से पोषव लगे चलउग् मार्ग के वोटों ये अपन पेरो तन ददावर लापवा सारे पारउत कर दूंगी । सदा सनम
User Reviews
No Reviews | Add Yours...