हिंदी रस गंगाधर भाग - ३ | Hindi Rasgangadhar Bhag - 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२३) है। हमने प्रथम भाग की भूमिका में गुणों और अलंकारों का मेद समभाते हुए दरढी और वामन के मत के अनुसार यह बताया है कि “क्राव्य में काव्यत्व लानेवाके धर्मों का नाम गुग है ओर इस काव्यत्व को उत्कृष्ट करनेवाले धर्मों का नाम अलंकार है। “काव्यशोभाया: कर्चारो धर्मां गुणाः “तदतिशयहेतवस्त्वलंकारा४? ( वामन ) ( देखिए प्रथमभाग की भूमिका का विषयविवेचन भाग )। वामन श्रौर दण्डी के बाद अन्य विद्वानों ने अपनी-श्रपनी बुद्धि के अ्रनुसार अन्यान्यलक्षण भी बनाए रई। जयदेव ने चन्द्रालोक में लिखा है--- “शब्दार्थयोः प्रसिद्धया वा कवेः प्रौहिवशेन वा । हारादिबदलंकारः सनिवेशो मनोहरः ॥ शर्थात्‌ प्रसिद्धि के श्रथवा कवि की प्रोढि ( अतिशयोक्ति ) के अधीन होकर जो शब्द श्रथ का, हर आदि की तरह, मनोहर विन्यासा होता है उसे अलंकार कहते ई । साहित्यसार में लिखा है-- “रसादिमिन्नत्वे शब्द विशोषभ्रवशोत्तरम्‌ । चमत्कारकरत्वं यदलङ्कारत्वमत्र॒॒ तत्‌ ॥ अर्थात्‌ रसादि से भिन्न होने पर विशेष प्रकारके शब्द सुनने के अनन्तर होनेवाली चमत्कारों की उत्पादकता फो श्रलंकारत्व कहते हैं । तात्यय यह कि शब्द सुनने के श्रनन्तर जो कुष्ठ भी चमत्कारजनक वस्तु प्रतीत होती है, उसे अलंकार कहा जाता है, पर रस आदि को नहीं |” कुवलयानन्द की टीका में भी नव्यन्याय की शेली से इसी बात को लिखा दै-




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