एक और ज़िन्दगी | Ek Aur Zindagi

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Ek Aur Zindagi by मोहन राकेश - Mohan Rakesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुहागितें कमरे में दाखिल होते ही मनोरमा चौंक गई । काशी उसकी साड़ी का पल्‍्ला सिर पर लिए ड़ सिंग टेबल के पास खड़ी थी । उसके श्रोठ लिप- स्टिक से रंगे थे श्रौर चेहरे पर बेहद पाउडर पुता था जिससे उनका सांवला चेहरा डरावना लग रहा था । फिर भी वह मुग्ध भाव से थीक्षे में रूप निहार रही थी । मनोरमा उसे देखते ही से बाहर हो गई। माई उसने चिल्लाकर कहा यह कया कर रही है ? काशी ने हड़बड़ाकर साड़ी का पल्ला सिर से हटा दिया श्रौर ड्रेसिंग टेबल के पास से हट गई । मनोरमा के गुस्से के तेवर देखकर पल- भर तो वह सहमसी रही । फिर श्रपने स्वांग का ध्यान श्रा जाने से हंस पड़ी । बहनजी माफी दे दें उसने सिन्नत के लहजे में कहा यह कमरा ठीक कर रही थी । थशीक्षे के सामने शझ्राई तो ऐसे ही मन कर श्राया । मेरी तनखाह से पेसे काट लेना । से पैसे काट लेना 1 मनोरमा झ्ौर भी भड़क उठी पंद्रह रुपये तनखाह है बेगम साहब साढ़े छह रुपये लिपस्टिक के कटाएंगी । कम्बख्त रोज़ प्लेटें तोड़ती है में कुछ नहीं कहती । थी झाटा. चीनी सब छुराकर ले जाती है भ्रौर में देखकर भी नहीं देखती । सारा




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