जीवन का सत्य | Jivan Ka Satya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
155
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवर्न की सत्य ११
नौकरानी के तौर पर अ्रवश्य रख लेंगे । इस समय में बड़े सद्धूट में हूँ ।
झ्राप अवश्य मेरी कुछ सहायता करें ।'
में श्रब तक आगन्तुका से इतनी नम्नता और शिष्टता से पेश आ
रहा था, जैसे कोई बड़े भारी लांडं की पत्नी मुभसे मिलने श्राई हो ! पर
जब उसने नौकरानी के तौर पर रहने की बात कही, तो जैसे मेरे पाँवों
के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई । अपने-आपको सँभालते हुए मेने कहा--
लेकिन मुभे तो इस समय किसी नौकरानी की जरूरत नहीं ह ।'
जरूरत नहीं ? या श्राप मुभसे पिण्ड छुड़ाने के लिए ऐसा कह
रहे है ।'
तुम जो भी समभो--मेंने मुस्करा कर कहा ।
सहसा उसकी सजल श्रांखों से भ्राग-सी निकलने लगी । भौहों में
बल डालते हुए उसने कहा--लेकिन आप इस व्यंग्य शौर क्रूरता के साथ
हँस क्यों रहे हें ? क्या में पागल हूँ ? बदशकल हूँ ? या तमाशा हूँ ?
में आपसे भीख नहीं चाहती; परिश्रमपूर्वक श्रापकी सेवा करके सिफं
गुज़ारेभरर की सहायता चाहती हूँ । इसमें हंसने की क्या बात ह ?'
श्रोह्, श्राप तो बुरा मान गईं । निस्सन्देह मेरा स्वभावही हंसने का
हं, लेकिन श्राप यह कदापि न समभे कि मे श्रापकी गरीबी या बुरे हाल
पर हंस रहा हं । जब आप हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानियो के बारे मं
इतना जानती हें, तो मुझे विश्वास है कि आपको मेरे बारे में किसी प्रकार
की ग़लतफ़्हमी नहीं होगी । दरअसल मुभे इस समय किसी नौकरानी की
जरूरत नहीं है, श्रन्यथा मँ श्रापको श्रवश्य रख लेता । श्राप इस लाचारी
के लिए मुभे क्षमा करे ।'
क्षमा करू ?--सजल श्राँखों से मेरी श्रोर देखते हुए उसने कहा--
“मे भ्रापको क्षमा कर सकती हूं, पर मेरा पेट तो मुझे क्षमा नहीं करेगा ।'
दरअसल मुभे बड़ा खेद हे कि में आपकी कोई सहायता नहीं कर
सका ।
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