समाजवादी आदर्शों के आलोक में वेदान्त दर्शन का अनुशीलन | Samajwadi Adarson Ke Alok Me Vedant Darshan ka Anushelan

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Samajwadi Adarson Ke Alok Me Vedant Darshan ka Anushelan  by जटाशंकर - Jatashankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सेन्ट ता इमन समाज की. कल्पना शक वैविध्यपूर्ण कर्मशाला के ख्प में करते हैं ।इस फकर्मशाला सिद्धान्त कापरोक्ष प्रभाव पह होगा पक सरपार व्यायतयों पर शातन करने की अपेक्षा वस्तुओं पर शातन करने के प्रति समर्पित होगी अर्थात्‌ राजनीति कै स्थान पर अपशास्त्र की स्थापना ही सकेगी । समाज की व्यर्वात्थित उधौग प्रदान करके तथा राजनीति के स्थान पर अर्थशास्त्र की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करके साइमन ने समाजवाद कै एक आपाम को चघिकित किया है । र्माइल तुरब्रीम ने अपने लिशलिधष में यह गसद्ध किया है कि पदि आर्थिक -हित सर्वौपरि है तो इसकी पूर्ति उधोग व्पवत्था परबल देकर अधिकतम संभव उत्पादन प्राप्त करके की जा सकती है 1 वपुनश्व उन्होंने पह भी. कहा । उधीग के समाजी करण के बिना समाज औदवोशिक नहीं हो सकता । अस्तु औधोगीकरण तरकफत तसमाजवाद तक पहुँघता है । दुरछ्ीम के तर्क नमन के तकां मे अधिक सबल हैं अत साइमन को संस्थापक- समाजवादी के रुप मैं स्वीकार करना ही उचित है । सेन्ट साइमन के अनुपायी उनकी अपैक्षा अधिक तमाजवाटी दिखाई पड़ते हैं । उनके अनुसार नई औदो शिक-ट्पवस्था निजी -सम्पात्ति के ताथ नहीं चल सकती । उन्होंने सत्ता एत सम्पातत्ति की वशानुगत व्यवस्था का विरोध ककिपा और यह स्वीकार फिपा कक सम्पत्ति का सही अधिकार राज्य को ल्‍ है जिद सम्पूर् समाज को विकास का तमान अवसर मिल सके । साइमन वा दिपों के समाजवादी घिवार कई टरष्टियों से ज्रान्तिकारी




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